1953 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि भारत में लोकतंत्र काम नहीं करेगा। यह केवल दिखावे का लोकतंत्र होगा। उन्होंने कहा कि भारत की सामाजिक संरचना संसद आधारित लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। चुनाव तभी मायने रखते हैं जब वे अच्छे नेताओं को चुनने में सफल हों। लेकिन क्या आज के चुनाव अच्छे नेता ला रहे हैं? https://youtu.be/XLKP95cvc7k?si=WStZdxt5KKg5E88J

अंबेडकर ने इस बात को नकारा कि चुनाव सिर्फ सरकार बदलने के लिए होते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों में चुनाव को लेकर जागरूकता नहीं है। हमारा चुनावी सिस्टम हमें उम्मीदवार चुनने की आज़ादी नहीं देता, हम केवल पार्टी को चुनते हैं। जैसे कि अगर किसी पार्टी का चुनाव चिन्ह बैल है, तो लोग बैल को वोट देते हैं, ये सोचे बिना कि उस बैल के पीछे कोई गधा भी हो सकता है।

2024 के लोकसभा चुनावों में केवल 7 निर्दलीय उम्मीदवार जीते। महाराष्ट्र की 288 सीटों में से केवल 2 निर्दलीय जीते, हरियाणा में 3 में से 90, जम्मू-कश्मीर में 7 में से 90 और झारखंड में 0 में से 81 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीती। इसका मतलब साफ है कि अंबेडकर की बात बिल्कुल सही थी। लोग उम्मीदवार नहीं, पार्टी को वोट देते हैं, और फिर स्थानीय समस्याओं जैसे सीवर की खराब व्यवस्था, घटिया सड़कों और भ्रष्टाचार की शिकायत करते हैं।

भारतीय वोटर किसे वोट दे रहे हैं और क्यों दे रहे हैं, ये कहना मुश्किल है। लेकिन एक बात साफ है कि वोटर के मन में राष्ट्रभक्ति और अपने समुदाय के अधिकारों की रक्षा की भावना बहुत गहरी है। यही सोच उन्हें एक खास विचारधारा, पार्टी या समूह की ओर खींचती है। यह राष्ट्रभक्ति कितना फायदेमंद है, ये इस पर निर्भर करता है कि इसकी कितनी ‘खुराक’ ज़रूरी है और कितनी ‘ओवरडोज़’ हो जाती है।

यही समस्या हमारे नेताओं के साथ दशकों से रही है। वे ऐसे नीति बनाते हैं जो देश भर पर असर डालती हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर नहीं। जैसे कि देश में आईआईटी और आईआईएम बनाए गए और ये योजना सफल रही – लेकिन इसका फायदा भारत को नहीं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, जापान और सिंगापुर को हुआ। वहां भारत के पढ़े-लिखे लोग अच्छी तनख्वाह के लिए चले गए। दूसरी तरफ चीन ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर ध्यान दिया, जिससे स्थानीय विकास हुआ और वहां के लोग हुनरमंद बने।

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