न्याय की प्रतीक्षा में श्रमिक कोटा कलेक्ट्रेट के बाहर जे.के. सिंथेटिक मजदूर यूनियन द्वारा चलाया जा रहा धरना शुक्रवार को 51वें दिन में प्रवेश कर गया। यह धरना उन 4500 कर्मचारियों को उनके बकाया वेतन और अन्य भुगतान दिलवाने की मांग को लेकर किया जा रहा है, जिन्हें फैक्ट्री बंद होने के बाद से अब तक न्याय नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए स्पष्ट आदेश के बावजूद सरकार इस दिशा में ठोस कार्रवाई करने से पीछे हट रही है।
भूमि विवाद: संघर्ष की जड़ में छुपा खेल
जे.के. सिंथेटिक फैक्ट्री की बंदी के बाद कर्मचारियों को आशा थी कि उनकी बकाया राशि फैक्ट्री की संपत्ति को नीलाम कर या अन्य माध्यमों से चुकाई जाएगी। लेकिन फैक्ट्री की करीब 317 बीघा जमीन, जो कि कोटा शहर में अति-मूल्यवान मानी जाती है, अब विवादों के घेरे में है। मजदूर यूनियन का आरोप है कि इस भूमि पर भू-माफियाओं और राजनीतिक रसूखदारों की नजर है, जो इसे हड़पने की कोशिश कर रहे हैं। यह भूमि यदि सरकार की निगरानी में रहकर नीलाम होती, तो उससे प्राप्त राशि से कर्मचारियों को आसानी से भुगतान किया जा सकता था। लेकिन इसमें देरी और जटिलताओं के पीछे सत्ता और पैसे का खेल सामने आ रहा है।
कर्मचारियों को भुगतान कब किया जाएगा
इस भूमि को लेकर विभिन्न स्तरों पर कानूनी पेचिदगियाँ और तथाकथित ‘लीज डीड’ विवाद सामने आए हैं, जिससे सरकार यह दावा कर रही है कि तत्काल भुगतान संभव नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मई 2023 में आदेश दिया था कि कर्मचारियों को न्यूनतम 20,000 रुपये प्रति व्यक्ति का भुगतान तत्काल किया जाए, जिसे भी अब तक लागू नहीं किया गया।
यूनियन की चेतावनी एवं जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल
तीनों यूनियनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे आने वाले समय में राज्यव्यापी आंदोलन की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। धरने में शामिल लोगों ने कोटा के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी और उदासीनता पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है, तो स्थानीय और राज्य सरकारों को इसमें देरी करने का कोई अधिकार नहीं है।