फरवरी 2025 में भारत का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) केवल 2.9% की वृद्धि दर्ज कर पाया, जो पिछले छह महीनों में सबसे धीमी वृद्धि दर है। जहाँ एक ओर यह आंकड़ा आर्थिक विकास को लेकर चिंता बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है—क्या औद्योगिक गतिविधियों में यह गिरावट पर्यावरण के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है?

 

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) एक प्रमुख आर्थिक संकेतक है, जिसे भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा मासिक रूप से जारी किया जाता है। यह खनन, विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग), और विद्युत जैसे मुख्य क्षेत्रों की प्रगति को दर्शाता है। इसमें विनिर्माण क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक होता है, और यही क्षेत्र पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य स्रोत भी है।

पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव

औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट के चलते कई अल्पकालिक पर्यावरणीय लाभ देखे जा सकते हैं:

प्रदूषण में कमी के संकेत

उत्पादन और निर्माण गतिविधियों में गिरावट के चलते वायुमंडल में प्रदूषक तत्वों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) की मात्रा घट जाती है। इससे वायु गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

ऊर्जा की खपत में कमी के संकेत।

उद्योगों में धीमापन आने से बिजली की खपत घटती है, विशेष रूप से कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधनों से उत्पन्न ऊर्जा की। यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में सहायक हो सकता है।

प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव में कमी के संकेत

खनिजों और कच्चे माल की मांग में कमी आने से उनके दोहन में भी गिरावट आती है, जिससे प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को राहत मिलती है।

दबाव की सीमाएं एवं चुनौतियां

जैसे ही अर्थव्यवस्था दोबारा गति पकड़ती है, प्रदूषण और संसाधनों की खपत भी फिर से बढ़ जाती है। लंबे समय तक औद्योगिक मंदी रहने पर सरकार की हरित (ग्रीन) परियोजनाओं और स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करने की क्षमता घट सकती है। पर्यावरण के लिए अनुकूल उद्योग जैसे सौर पैनल या इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण भी मंदी की चपेट में आ सकते हैं। औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, आर्थिक दृष्टिकोण से चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन पर्यावरण के लिए यह एक अस्थायी राहत प्रदान कर सकता है। यह समय है जब नीति निर्माताओं को पारंपरिक औद्योगिक विकास के साथ-साथ सतत और पर्यावरण के अनुकूल विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। औद्योगिक पुनरुद्धार की योजना बनाते समय हरित प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता देना आवश्यक है, ताकि आर्थिक प्रगति और पर्यावरणीय सुरक्षा साथ-साथ चल सकें।

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