उदयपुर: राजस्थान के मार्बल हब उदयपुर में स्थित मार्बल व्यापारियों ने केंद्र सरकार से तुर्की से मार्बल आयात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उन्होंने यह कदम तब उठाया जब हाल ही में हुए “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान तुर्की के ड्रोनों का इस्तेमाल पाकिस्तानी पक्ष द्वारा किया गया था। उदयपुर मार्बल प्रोसेसर्स एसोसिएशन ने यह फैसला सर्वसम्मति से लिया है कि अब तुर्की से कोई भी मार्बल आयात नहीं किया जाएगा।
देशहित सबसे ऊपर – व्यापारी बोले
एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सुराणा ने ANI को बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर तुर्की से मार्बल समेत अन्य उत्पादों के आयात पर रोक लगाने का आग्रह किया है। महासचिव हितेश पटेल ने कहा, “हमारा तुर्की से सालाना आयात करीब 2500-3000 करोड़ रुपये का है, लेकिन देशहित सबसे ऊपर है। व्यवसाय और उद्योग कभी भी राष्ट्र और राष्ट्रीय हित से बड़ा नहीं हो सकते।”
दूसरे उत्पादों पर भी प्रतिबंध की मांग
हितेश पटेल ने कहा कि केवल मार्बल ही नहीं, बल्कि तुर्की से आने वाले अन्य उत्पादों पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। अगर पूरे देश की मार्बल ट्रेड एसोसिएशन इस निर्णय का समर्थन करती हैं, तो यह दुनिया को साफ संदेश देगा कि भारत के व्यापारी सरकार के साथ खड़े हैं।
तुर्की से 70% मार्बल आता है
भारत हर साल करीब 14-18 लाख टन मार्बल आयात करता है, जिसमें से लगभग 70 प्रतिशत मार्बल तुर्की से आता है।
देश में मार्बल की जरूरत कैसे पूरी होगी?
1. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा:
राजस्थान, गुजरात, और मध्यप्रदेश में मौजूद मार्बल खदानों को और अधिक सक्रिय किया जाए।
आधुनिक तकनीक से खनन को तेज और सस्ता बनाया जा सकता है।
2. स्थानीय उद्योगों को समर्थन:
MSME स्तर पर मार्बल प्रोसेसिंग यूनिट्स को सब्सिडी और आसान लोन उपलब्ध कराए जाएं।
लोकल उद्यमियों को बढ़ावा देकर रोजगार भी बढ़ाया जा सकता है।
3. अन्य मित्र देशों से आयात विकल्प:
वियतनाम, इटली और ईरान जैसे देशों से विकल्प के रूप में मार्बल आयात किया जा सकता है।
4. उपभोक्ता जागरूकता:
“वोकल फॉर लोकल” अभियान के तहत ग्राहकों को भारतीय मार्बल अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए।
उदयपुर के मार्बल व्यापारियों का यह कदम केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि देश के प्रति एकजुटता और राष्ट्रप्रेम का उदाहरण है। यदि देशभर के व्यापारी इस पहल से जुड़ते हैं, तो यह एक बड़ा आर्थिक और नैतिक संदेश बन सकता है।