राजस्थान में इन दिनों जोधपुर एयरपोर्ट के नामकरण को लेकर समाजों के बीच गहरी खींचतान देखी जा रही है। चिपको आंदोलन की नायिका अमृता देवी बेनीवाल के नाम पर एयरपोर्ट का नाम रखने की मांग को लेकर बिश्नोई समाज का एक वर्ग सक्रिय है, जो नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल से भी इस संबंध में गुहार लगा चुका है। लेकिन यह मांग एक ऐसे नेतृत्व के सामने रखी जा रही है, जो यह मानने को ही तैयार नहीं है कि ऐसी कोई ऐतिहासिक घटना घटी थी।
राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो जोधपुर सीट पर लंबे समय तक जसवंत सिंह बिश्नोई का वर्चस्व रहा है। 2014 की मोदी लहर में यह टिकट काटकर गजेंद्र सिंह शेखावत को दिया गया, इसके बावजूद बिश्नोई समाज ने लगातार तीन चुनावों में भाजपा का समर्थन जारी रखा। आने वाले चुनावों में भी यही स्थिति दोहराए जाने की संभावना प्रबल है। विडंबना यह है कि बिश्नोई समाज के धार्मिक, सामाजिक आयोजनों में सरकार या प्रतिनिधियों की उपस्थिति तक सुनिश्चित नहीं हो रही। खेजड़ली मंदिर में आयोजित प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम इसका उदाहरण है, जहां मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए नेता कार्यक्रम में शामिल तक नहीं हुए।
राजनीति में समाज की आवाज़ तब तक दबा दी जाती है, जब तक वह एकजुट होकर अपने हक की मांग नहीं करता। आज समाज की राजनीतिक पकड़ और सोच, कथित संतों और स्वार्थी नेताओं के लालच की भेंट चढ़ चुकी है। बलात्कार जैसे गंभीर आरोपों से बचाव या सरकारी टेंडरों की जुगाड़ के लिए समाज का सम्मान गिरवी रखा जा रहा है। नामकरण की मांग हो या पहचान की लड़ाई अगर समाज एकजुट नहीं हुआ, तो उसकी आवाज वही होगी जो शिलापट पर दबी हो या चुनावी रिपोर्ट के पन्नों में सिमटी हो।