राजस्थान में कंप्यूटर अनुदेशक (Computer Instructors) लंबे समय से वेतनमान और ग्रेड पे को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में वायरल हुई एक पोस्ट ने इस मुद्दे को फिर से सामने ला दिया है, जिसमें बताया गया कि कंप्यूटर अनुदेशकों को सिर्फ 2800 रुपये की ग्रेड पे दी जा रही है। वहीं, शिक्षा विभाग में ही कार्यरत म्यूजिक, ड्राइंग और क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर्स को बिना B.Ed योग्यता के भी 4800 रुपये की ग्रेड पे मिल रही है। इससे कंप्यूटर अनुदेशकों में आक्रोश है और वे इसे खुला भेदभाव मान रहे हैं।
सरकारी नौकरी में “ग्रेड पे” उस पद की जिम्मेदारी और दर्जे को दर्शाती है, जो बेसिक सैलरी के अतिरिक्त राशि होती है। ज्यादा ग्रेड पे का मतलब होता है ज्यादा वेतन और ऊँचा पद। ऐसे में कंप्यूटर अनुदेशक यह सवाल उठा रहे हैं कि जब अन्य समान पदों पर कार्यरत लोगों को अधिक ग्रेड पे दी जा सकती है, तो उन्हें क्यों नहीं? उनका आरोप है कि कुछ दलालों और अवसरवादी संगठनों ने सरकार द्वारा प्रस्तावित 3600 ग्रेड पे को सहमति दे दी, जिससे असली हक दबा दिया गया। इसीलिए अब उनका स्पष्ट कहना है— “कोई समझौता स्वीकार नहीं”, और वे 4200 व 4800 ग्रेड पे की मांग को लेकर एकजुट होकर संघर्ष कर रहे हैं।
यह समस्या समाज के दो चेहरे उजागर करती है। पहला, प्रशासनिक भेदभाव जहाँ एक ही विभाग में कार्यरत कर्मचारियों के लिए अलग-अलग वेतनमान तय किए जा रहे हैं, जो नीति और न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। दूसरा, अवसरवाद और मौन समर्थन जब कुछ प्रतिनिधि व्यक्तिगत फायदे के लिए गलत निर्णयों को सहमति दे देते हैं, तो पूरे वर्ग का हक मारा जाता है। इससे कर्मचारियों का भरोसा भी टूटता है और संघर्ष की भावना जन्म लेती है।
इसका समाधान यही है कि सरकार एक समान वेतन नीति लागू करे, जिसमें एक ही विभाग में समान योग्यता और कार्य वाले पदों के लिए ग्रेड पे बराबर हो। इसके लिए स्वतंत्र वेतन पुनरीक्षण समिति बनाई जानी चाहिए और अनुदेशकों से सीधी वार्ता कर उनकी मांगों को समझना जरूरी है। जब शिक्षा विभाग के अन्य इंस्ट्रक्टर्स बिना B.Ed के भी 4800 ग्रेड पे पा सकते हैं, तो तकनीकी दक्षता रखने वाले कंप्यूटर अनुदेशकों को कम वेतनमान देना अन्यायपूर्ण ही नहीं, बल्कि “डिजिटल इंडिया” के सपनों के विपरीत भी है। अब समय आ गया है कि इस भेदभाव को समाप्त कर कंप्यूटर अनुदेशकों को उनका वाजिब हक दिया जाए।