दिल्ली— गुमनाम सेनानियों को समर्पित कार्यक्रम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत दिल्ली मेट्रो द्वारा एक विशेष जन जागरूकता कार्यक्रम की शुरुआत की गई है, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों को सम्मानित किया जाएगा।
कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं:
ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह जामवाल को समर्पित विशेष सम्मान
एक प्रमुख मेट्रो स्टेशन पर उनका स्मृति पट्ट / डिजिटल डिस्प्ले स्थापित किया जाएगा
मेट्रो परिसर में वीरता गाथा पोस्टर प्रदर्शनी लगाई जाएगी
ऑडियो-विजुअल क्लिप के माध्यम से यात्रियों को उनके योगदान से अवगत कराया जाएगा
स्कूली छात्रों और आम यात्रियों के लिए क्विज और संवाद सत्र आयोजित किए जाएंगे
स पहल का उद्देश्य उन वीर सेनानियों के बलिदान को जन-जन तक पहुंचाना है, जिनका योगदान इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है, पर देश की सीमाओं को आकार देने में उनकी भूमिका अमूल्य रही है। “अगर उन दिनों जांबाज़ों ने पाकिस्तानियों को न खदेड़ा होता, तो देश का नक्शा कुछ और होता”: ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह जमवाल की वीरता और रियासतों की निर्णायक भूमिका
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बाद की सबसे चुनौतीपूर्ण घड़ियों में, जब पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों ने जम्मू-कश्मीर, जैसलमेर और जोधपुर की सीमाओं पर हमला बोला, तब कुछ वीर योद्धाओं और देशभक्त राजाओं ने वह साहसिक निर्णय लिए जो आज भारत की सीमाओं और एकता के मूल स्तंभ बने।
ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह जमवाल, MVC, जिन्हें ‘कश्मीर का रक्षक’ कहा जाता है, ने 1947 में पाकिस्तानी कबायली हमलावरों को श्रीनगर की ओर बढ़ने से रोकने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। उनकी शहादत ने तत्कालीन महाराजा हरि सिंह को भारत में विलय पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया। यदि ब्रिगेडियर जमवाल और उनके जैसे योद्धा समय पर मोर्चे पर डटे नहीं होते, तो आज जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होता।
इसी तरह, जैसलमेर और जोधपुर की रियासतों ने पाकिस्तान की चालों को नाकाम किया। खासकर जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह, जिन पर पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने रियासत को पाकिस्तान में मिलाने का दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने अंततः भारत के पक्ष में फैसला लिया। इस दौरान एक प्रेरणादायक घटना सामने आई जब जयपुर नरेश को जोधपुर के राजा द्वारा भेजे गए हेलीकॉप्टर से राजधानी लाने का अनुरोध किया गया ताकि उन्हें सुरक्षित किया जा सके। लेकिन जयपुर के राजा ने यह कहकर इंकार कर दिया कि, “मैं अपने लोगों को छोड़कर नहीं जा सकता।” यह उनके जनता के प्रति समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा का जीवंत उदाहरण था।
आज जब हम देश की सीमाओं की सुरक्षा की बात करते हैं, तो यह याद रखना जरूरी है कि वे केवल युद्ध के मैदानों में नहीं, बल्कि राजाओं के साहस, सैनिकों के बलिदान, और जनता के प्रति कर्तव्य में भी सुरक्षित हुई हैं। यह इतिहास केवल भूगोल नहीं बदलता, यह आने वाली पीढ़ियों को जिम्मेदारी और राष्ट्रीय गर्व का पाठ पढ़ाता है।