13 मई 2008 को पिंक सिटी जयपुर की फिज़ाओं में खौफ फैल गया था जब मात्र 15 मिनट के भीतर नौ सिलसिलेवार बम धमाकों ने पूरे शहर को दहला दिया। बाजारों में पसरा हुआ सामान्य जीवन देखते ही देखते चीख-पुकार में बदल गया। इन हमलों में 71 निर्दोष लोगों की जान गई और 180 से अधिक घायल हुए। एक जिंदा बम चांदपोल बाजार के पास रामचंद्रजी मंदिर में पाया गया, जिसे सुरक्षा बलों ने समय रहते निष्क्रिय कर दिया। इन आतंकी घटनाओं की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली थी, जिसने ईमेल के जरिए धमाकों का वीडियो भेजकर देश की सुरक्षा व्यवस्था को खुली चुनौती दी थी।
जांच एजेंसियों ने मोहम्मद सैफ, सैफुर रहमान, सरवर आज़मी और मोहम्मद सलमान को गिरफ्तार किया। साल 2019 में निचली अदालत ने इन चारों आरोपियों को दोषी मानते हुए उन्हें मौत की सज़ा सुनाई। लेकिन मार्च 2023 में राजस्थान हाईकोर्ट ने सबूतों की कमी और जांच में गंभीर खामियों के चलते सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले ने न सिर्फ पीड़ित परिवारों को निराश किया, बल्कि आतंक के खिलाफ न्याय प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए। राजस्थान सरकार ने यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
हालांकि अप्रैल 2025 में न्याय की एक नई किरण तब दिखाई दी जब एक विशेष अदालत ने 2008 में रामचंद्रजी मंदिर के पास बरामद हुए जिंदा बम के मामले में इन्हीं चारों आरोपियों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने उन्हें UAPA, IPC और विस्फोटक अधिनियम की धाराओं के तहत दोषी ठहराया और ₹1.6 लाख जुर्माना भी लगाया।
इस फैसले ने 17 साल से न्याय की राह देख रहे पीड़ितों को कुछ राहत जरूर दी है, लेकिन मुख्य धमाकों में हुई मौतों और बर्बादी के लिए न्याय अब भी अधूरा है। यह मामला देश की जांच एजेंसियों और न्याय प्रणाली के सामने एक कड़ा सबक है कि आतंक से जुड़ी किसी भी जांच में लापरवाही की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।