सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी एप्स पर प्रतिबंध लगाने या उन्हें नियंत्रित करने की मांग की गई है। यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. के.ए. पॉल द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने दावा किया कि इन एप्स के कारण युवाओं में आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं और यह समाज के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि सट्टेबाजी और जुआ सामाजिक विकृतियाँ हैं, जिन्हें केवल कानून बनाकर पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता। हालांकि, कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा है और आवश्यकता पड़ने पर राज्यों को भी इसमें शामिल करने की बात कही है।
याचिका के मुख्य बिंदु
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कई बॉलीवुड और टॉलीवुड अभिनेता, क्रिकेटर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर इन सट्टेबाजी एप्स का प्रचार कर रहे हैं, जिससे युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। तेलंगाना में दर्ज एक एफआईआर का हवाला देते हुए कहा गया कि 25 से अधिक सेलिब्रिटीज़ के खिलाफ इन एप्स के प्रचार के लिए मामला दर्ज किया गया है।याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि ऑनलाइन सट्टेबाजी के कारण कई युवाओं ने आत्महत्या की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है।
केंद्र सरकार की स्थिति
केंद्र सरकार ने पहले सुप्रीम कोर्ट में यह स्पष्ट किया था कि ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स, जो सट्टेबाजी और जुए में शामिल हैं, उन पर 28% वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होता है। सरकार का मानना है कि इन गतिविधियों को जुए के समान माना जाना चाहिए और इन्हें कर के दायरे में लाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि ऑनलाइन सट्टेबाजी एप्स पर नियंत्रण की आवश्यकता है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि केवल कानून बनाकर इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। इसके लिए समाज, सरकार और टेक्नोलॉजी कंपनियों को मिलकर काम करना होगा ताकि युवाओं को इस लत से बचाया जा सके।