राजस्थान में सब-इंस्पेक्टर (SI) भर्ती को लेकर एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसने युवाओं के भरोसे को झकझोर कर रख दिया है। एक महिला अभ्यर्थी के बयान ने मामले को और भी गंभीर बना दिया है, जिसमें मंत्री से जुड़े नामों की सार्वजनिक जांच की मांग उठ रही है।
महिला ने बताया कि उसने और उसकी बहन मंजू ने अपने पड़ोसी लड़के अनिल के माध्यम से 6 लाख रुपये एक महिला “छम्मी उर्फ सम्मी” को बस स्टैंड पर पहुंचाए। यह रकम के.के. विश्नोई से उधार ली गई थी, जो महिला का पुराना परिचित बताया गया है। इसके अलावा, मंजू ने अपने स्तर पर 5.75 लाख रुपये और खुद महिला ने 2 लाख रुपये छम्मी को दिए। छम्मी ने यह रकम एक दिनेश नाम के लड़के को भिजवाने के लिए ली थी। शेष रकम की बात पर महिला ने कहा, “जब मैं जॉइनिंग कर लूंगी, तब बाकी दे दूंगी।”
इस बयान ने भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। युवाओं में गुस्सा है, क्योंकि परीक्षा उनके भविष्य की नींव है। अगर यह नींव भ्रष्टाचार की मिट्टी से बनी हो, तो पूरी पीढ़ी का यकीन हिल सकता है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सत्ता संभालते ही कहा था, “युवा हमारी प्राथमिकता हैं।” अब समय आ गया है कि वह उस वादे की कसौटी पर खरे उतरें। जब एक दौर में बीजेपी के नेता जैसे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी पर आरोप लगते ही कुर्सी छोड़ते थे, तो आज नैतिक जिम्मेदारी से भाग क्यों लिया जा रहा है?
यह सिर्फ एक भर्ती घोटाला नहीं है। यह एक पीढ़ी के विश्वास और लोकतंत्र की नैतिकता का इम्तिहान है। जरूरत है कि जांच निष्पक्ष और तेज़ हो, ताकि न सिर्फ इंसाफ़ हो, बल्कि उसका दीदार भी हर युवा को हो सके।