बिहार और देश के अन्य राज्यों में परीक्षा पेपर लीक की साजिशों का मास्टरमाइंड संजीव मुखिया उर्फ लूटन मुखिया आखिरकार आर्थिक अपराध इकाई (EOU) के शिकंजे में आ गया। सरकारी नौकरी में रहते हुए भी उसने संगठित तरीके से पेपर लीक जैसे गंभीर अपराध को अंजाम दिया। 36 घंटे की लंबी पूछताछ के बाद रविवार को उसे जेल भेज दिया गया।
पूछताछ के दौरान संजीव ने बताया कि उसका मकसद अपनी पत्नी को एक बार विधायक (MLA) या सांसद (MP) बनाना है। उसने कहा, “सर, एक बार पत्नी एमएलए या एमपी बन जाए, फिर सब कुछ छोड़ देंगे। चुनाव लड़ने में बहुत खर्च होता है, पेपर लीक से ही उतना पैसा आ सकता है।” संजीव की पत्नी ने 2020 में हरनौत विधानसभा सीट से लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गई थीं। अब संजीव उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाना चाहता है।
नीट पेपर लीक में संजीव की भूमिका
जब ईओयू ने नीट पेपर लीक में उसकी भूमिका पर सवाल किया, तो उसने सीधा जवाब देने से बचते हुए कहा कि इस पूरे नेटवर्क को उसका बेटा डॉ. शिव और भतीजा अश्विनी रंजन मैनेज करते थे। उसने बताया कि डॉक्टरों का एक पूरा सॉल्वर गैंग उसके और बेटे के संपर्क में है, जिसमें बिहार, झारखंड और राजस्थान के करीब 200 डॉक्टर शामिल हैं। इन्हें पेपर सॉल्व करने के लिए 8 से 10 लाख रुपए दिए जाते थे।
ईओयू को संजीव की मेल आईडी, मोबाइल और डायरी से पीएमसीएच, एनएमसीएच, एम्स पटना और केएमसीएच जैसे मेडिकल कॉलेजों से जुड़े कई डॉक्टरों के नाम मिले हैं। जांच जारी है।
आय से अधिक संपत्ति और संपत्ति छुपाने की कोशिशें
संजीव के पास आय से 144% अधिक संपत्ति होने के आरोप भी हैं। अनुमान है कि उसकी कुल अघोषित संपत्ति करीब 1.75 करोड़ रुपये है। उसने संपत्तियों को पत्नी, बच्चों और पिता के नाम पर ट्रांसफर किया है ताकि जब्ती से बचा जा सके।
झारखंड CGL पेपर लीक में भी संलिप्तता की आशंका
संजीव पर झारखंड की CGL परीक्षा के पेपर लीक में भी संलिप्तता का शक है। झारखंड पुलिस ने भी उससे रविवार को पूछताछ की। बताया जा रहा है कि रांची, देवघर और हजारीबाग में उसके गिरोह के कई सदस्य सक्रिय हैं।
CBI दिल्ली की टीम करेगी पूछताछ
CBI पटना यूनिट पहले ही संजीव से पूछताछ कर चुकी है। अब CBI दिल्ली की टीम भी पटना पहुंच चुकी है और जल्द ही उसे रिमांड पर लेकर पूछताछ करेगी। वहीं EOU भी सोमवार को दो दिन की रिमांड के लिए कोर्ट में अर्जी देगी।
यह मामला न केवल परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं किस तरह भ्रष्टाचार और संगठित अपराध को जन्म दे रही हैं।