जालोर: जिले के प्रमुख ऐतिहासिक व पर्यटन स्थल स्वर्णगिरी दुर्ग की मरम्मत तो कर दी गई, लेकिन पर्यटकों के लिए दुर्ग तक पहुंच अब भी पहेली बनी हुई है। तलहटी से करीब 1030 फीट ऊंचाई पर स्थित इस दुर्ग तक पहुंचने के लिए अब भी करीब 2 हजार सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। सरकार ने 2022 में 5 करोड़ के बजट से दुर्ग की क्षतिग्रस्त दीवारों, महलों और रंग-रोगन का कार्य करवाया, लेकिन सड़क निर्माण की योजना तकनीकी व प्रशासनिक उलझनों में फंस गई।
2023 में झरगेश्वर रोड से 5.45 किमी लंबी सड़क के निर्माण के लिए 27 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था। अक्टूबर 2023 में भूमि पूजन के साथ कार्य भी शुरू हुआ, लेकिन गलत अलाइनमेंट और फिजिबिलिटी मुद्दों के कारण अप्रैल 2024 में कार्य रोकना पड़ा। वन विभाग की जमीन पर प्रस्तावित इस सड़क के एवज में छीपरवाड़ा में 5.45 हेक्टेयर भूमि दी गई और 43.50 लाख रुपए क्षतिपूर्ति भी जमा करवाई गई। अब परियोजना को दोबारा जीरो बेस पर बनाकर प्रस्ताव राज्य स्तर पर लंबित है।
राजनीति बन रही अड़चन?
पूर्व ज.अ.अ.समिति अध्यक्ष पुखराज पाराशर ने सरकार पर राजनीतिक द्वेष का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि गहलोत सरकार में कार्य शुरू हुआ, लेकिन सत्ता बदलते ही योजना रोक दी गई। वहीं, विधानसभा के मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि पहले सर्वे नगर परिषद ने करवाया था, लेकिन बाद में पीडब्ल्यूडी को कार्यकारी एजेंसी बनाया गया और रीसर्वे कर नया प्रस्ताव तैयार किया गया है। डीएफओ जयदेव सियाग के अनुसार, वन विभाग की ओर से सभी दस्तावेज ऑनलाइन जमा कर दिए गए हैं और अब पर्यावरणीय स्वीकृति राज्य स्तर पर लंबित है।
जालोर दुर्ग को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की मंशा स्पष्ट है, लेकिन प्रशासनिक समन्वय और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते परियोजना बार-बार अटक रही है। यदि समय रहते मंजूरी नहीं मिली, तो करोड़ों की लागत और पर्यटन की संभावनाएं दोनों अधूरी रह जाएंगी।