राजस्थान का राज्य पशु चिंकारा (इंडियन गजेल) आज अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है। पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थलीय जिलों जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, बीकानेर व जालोर के खेतों व ओरणों में पाए जाने वाले ये मृदुभाषी वन्यजीव अब इंसानी गतिविधियों व आवारा कुत्तों के बीच पिस रहे हैं। चिंकारा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह रेगिस्तान के कठिन हालातों में भी जीवित रह सकता है, लेकिन आज यह मानवीय लापरवाही के कारण संकट में है।
तारबंदी से चिंकारा का प्राकृतिक आवास खत्म
राज्य सरकार ने किसानों को खेतों के चारों ओर जाली तारबंदी के लिए सब्सिडी दी है ताकि नीलगाय, सुअर व अन्य वन्यजीवों से फसल को बचाया जा सके। लेकिन इसका दुष्परिणाम चिंकारा जैसे निर्दोष जानवरों पर पड़ा है, जो अब खेतों में प्रवेश नहीं कर पा रहे। वे पानी, चारे और छांव के लिए भटकने को मजबूर हैं।
ओरणों में भी नहीं मिल रही शरण
गांवों की ओरण और गोचर भूमि जो पारंपरिक रूप से वन्यजीवों की शरणस्थली रही हैं। अब खुद असुरक्षित हो चुकी हैं। इन पर या तो सरकारी निर्माण हो रहा है या फिर अवैध कब्जे। साथ ही, बड़ी संख्या में आवारा कुत्ते इन क्षेत्रों में फैल गए हैं, जो चिंकारा जैसे कमजोर प्रजातियों पर हमला कर देते हैं। कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां कुत्तों ने चिंकारा को घेर कर मार डाला।
वन विभाग व सरकार की उदासीनता
वन विभाग के पास सीमित स्टाफ और संसाधन हैं, लेकिन चिंकारा की सुरक्षा के लिए कोई विशेष प्रोजेक्ट या संरक्षण योजना सामने नहीं आई है। सोशल मीडिया पर लोग टैग कर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। अब मांग है कि वन विभाग खुद आगे बढ़कर सरकार को प्रोजेक्ट बनाकर सौंपे, जिसमें:
हर गांव की ओरण को कुत्तामुक्त किया जाए या बायोडायवर्सिटी मेंटेन रखने हेतु संख्या अनुपात के हिसाब से रखी जाए,
ओरण में छोटे जंगल और जल स्त्रोत बनाए जाएं,
इन क्षेत्रों को वन भूमि घोषित किया जाए,
अवैध निर्माण और कब्जों पर रोक लगाई जाए।
यदि सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए तो चिंकारा जैसे महत्वपूर्ण वन्यजीव विलुप्त होने की कगार पर पहुंच सकते हैं। यह केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का भी संकट है।