अमूर्त विरासत सूची में शामिल कालबेलिया नृत्य, चर्चित नृत्य घूमर और कठपुतली
राजस्थान की संस्कृति को भारत की संस्कृति की राजधानी भी कहते हैं, इसकी संस्कृतियों में पहनावा, नृत्य शैली, खानपान आदि भारत में प्रसिद्ध हैं। आज इसकी नृत्य शैली की बात करते हैं, आप सबने घूमर, कठपुतली और कालबेलिया का नाम तो सुना ही होगा जो इसके नृत्य शैलियों में सबसे प्रसिद्ध हैं। इसीलिए आज इन नृत्य शैलियों एवं इनसे जुड़े नृत्यांगनाओं के बारे में जानेंगे क्योंकि हम अक्सर फ़िल्मों और सीरियल में इन नृत्यों को देखते हैं। हाल के वर्षों में कालबेलिया नृत्य को अमूर्त विरासत सूची में शामिल किया गया।
घूमर, राजस्थान का एक परंपरागत लोकनृत्य है एवं इसका विकास भील जनजातियों द्वारा माँ सरस्वती की आराधना के लिए शुरू किया गया था। यह नृत्य महिलाओं द्वारा घूंघट लगाकर और एक घूमेदार पोशाक जिसे ‘घाघरा’ कहते हैं, पहनकर की जाती है, इसमें महिलाएं एक बड़ा घेरा बनाते हुए अंदर और बाहर जाते हुए नृत्य करती हैं। घूमर नाम हिंदी शब्द घुमना से लिया गया है जो नृत्य के दौरान घूमने को सूचित करता है एवं यह कुछ घंटों तक चलता है। सामान्यतः कुछ घूमर गीतों पर यह नृत्य किया जाता है जैसे – ‘म्हारी घूमर’, ‘आवे हिचकी’, ‘तारां री चुंदड़ी’, ‘जंवाई जी पावणा’, ‘घूमर रे घूमर रे’ आदि। पद्मावत में दीपिका पादुकोण, लम्हे में श्रीदेवी, पहेली मूवी में रानी मुखर्जी जैसी कलाकारों ने घूमर नृत्य को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया है।
कठपुतली नृत्य को लोकनृत्य की ही एक शैली माना गया है। कठपुतली अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है जिसमें लकड़ी, धागे या प्लास्टिक की गुड़ियों द्वारा जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति तथा मंचन किया जाता है। इसके संदर्भ में पाणिनी के अष्टाध्यायी में नाटसूत्र में पुतला नामक नायक का उल्लेख मिलता है। पुतली कला की प्राचीनता के संबंध में तमिल ग्रंथ ‘शिल्पादिकारम्’ में भी जानकारी मिलती है। यही नहीं बल्कि चर्चित कथा सिंहासन बतीसी में विक्रमादित्य के सिंहासन की बत्तीस पुतलियों का उल्लेख मिलता है। कठपुतली नृत्य कठपुतलियों को बनाकर किया जाता है, यह एक अद्भुत प्रतिभा होती है जो कई कलाओं का मिश्रण है जैसे – लेखन, नाट्य कला, चित्रकला, वेशभूषा, मूर्तिकला, काष्ठ कला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य आदि। भारत में सभी प्रकार की पुतलियाँ पाई जाती हैं जिसमें धागा पुतली, छाया पुतली, छड़ पुतली, दस्ताना पुतली मुख्य हैं एवं इनमें राजस्थान में धागा पुतली पल्लवित है जिसे कठपुतली कहते हैं। पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वी राज, हीर-रांझा, लैला-मजनू की कथाएं ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं, लेकिन अब सामाजिक विषयों के साथ-साथ हास्य-व्यंग्य तथा ज्ञान संबंधी अन्य मनोरंजक कार्यक्रम भी दिखाए जाने लगे हैं।
कालबेलिया नृत्य कालबेलिया जनजाति समुदाय द्वारा ही शुरू किया गया, तथा यह इस जनजाति की संस्कृति का अभिन्न अंग है। कालबेलिया दो शब्दों से मिलकर बना है – काल और बेलिया, यहाँ काल का अर्थ स्वयं महाकाल और बेलिया का अर्थ नंदी यानि बैल से है। यह नृत्य सपेरों की एक प्रजाति द्वारा बदलते हुए सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के प्रति सृजनात्मक अनुकूलन का एक अद्वितीय उदाहरण है। यह नृत्य राजस्थान में मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा घाघरा पहनकर सांप की गतिविधियों की नकल करते हुए नाच और चक्कर लगाया जाता है। शरीर के ऊपरी भाग में पहने जाने वाला वस्त्र अंगरखा कहलाता है एवं ये सभी वस्त्र काले और लाल रंग के संयोजन से बने होते हैं और इन पर इस तरह की कशीदाकारी होती है कि जब नर्तक नृत्य की प्रस्तुति करते हैं तो पूरे परिवेश को शांतिमय वातावरण से सुसज्जित कर देते हैं। कालबेलिया नृत्य होली के अवसर विशेष तौर पर किया जाता है एवं इसके गीत सामान्यतः लोककथा और पौराणिक कथाओं पर आधारित होते हैं। ये गीत और नृत्य मौखिक प्रथा के अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं और इनका ना तो कोई लिखित विधान है ना कोई प्रशिक्षण नियमावली, 2010 में यूनेस्को द्वारा इस नृत्य को अमूर्त विरासत सूची में शामिल करने की घोषणा की गई।