जयपुर, 31 मई 2025: राजस्थान में पर्यावरणीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से रसायन, डाई, कीटनाशक, उर्वरक और डिस्टिलरी उद्योगों से जुड़े स्टेकहोल्डर्स की एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में विशेषज्ञों, किसानों, पर्यावरणविदों और औद्योगिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसका मुख्य उद्देश्य जैविक खेती को बढ़ावा देना, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करना तथा पर्यावरण-अनुकूल कृषि प्रणाली विकसित करना रहा।
कार्यशाला में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि पारंपरिक कृषि पद्धतियों में सुधार कर जैविक विकल्पों को अपनाना समय की मांग है। विशेष रूप से यह सुझाव सामने आया कि कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक विकल्पों को अपनाया जाना चाहिए। इसके लिए वर्मीकम्पोस्ट (केंचुए की खाद), नीम आधारित जैव कीटनाशक, ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक कवकनाशक तथा फसल चक्र और मिश्रित खेती जैसे पारंपरिक उपाय अपनाने की जरूरत है।
उपाय जो जैविक खेती को बढ़ावा देंगे:
1. प्रशिक्षण एवं जागरूकता: किसानों को जैविक खेती के तरीकों, लाभों और बाजार की मांग के बारे में प्रशिक्षण देना।
2. सरकारी सहायता: जैविक इनपुट्स पर सब्सिडी, प्रमाणन की प्रक्रिया को सरल बनाना और जैविक उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना।
3. प्रौद्योगिकी का समावेश: जैविक खेती में ड्रिप इरिगेशन, सोलर पंप और डिजिटल ट्रैकिंग जैसी तकनीकों का उपयोग।
4. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए गोबर, केंचुए की खाद और हरी खाद का प्रयोग।
क्या जैविक खेती बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकता पूरी कर सकती है?
यह प्रश्न कार्यशाला में चर्चा का मुख्य विषय रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि जैविक खेती की उत्पादकता पारंपरिक खेती के मुकाबले कुछ कम हो सकती है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह टिकाऊ है। यदि नीति-निर्माता, किसान और उपभोक्ता मिलकर कार्य करें, तो जैविक खेती से भी देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि कृषि-भूमि की उत्पादकता बढ़ाई जाए, बर्बादी को रोका जाए और स्थानीय फसलों को बढ़ावा दिया जाए। जैविक खेती केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है। यह न केवल पर्यावरण की रक्षा करती है, बल्कि किसानों की आय, उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और देश की खाद्य सुरक्षा को भी सुदृढ़ बनाती है।