राजस्थान के नागौर जिले में समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत कार्यरत विद्यालयों के कुक कम हेल्पर (रसोइया सह सहायिका) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीकानेर जिले के पलाना में आयोजित रैली में जबरन भेजने के आदेश ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (सीबीईओ), नागौर द्वारा दिनांक 20 मई 2025 को जारी आदेश क्रमांक C.B.E.O./Nagaur/164 में जिले के समस्त पीईईओ, प्रधानाचार्य व संस्था प्रमुखों को निर्देशित किया गया कि वे अपने अधीनस्थ विद्यालयों में कार्यरत कुक कम हेल्परों को ग्राम पंचायत के ग्राम विकास अधिकारी या पटवारी से संपर्क कर रैली में भेजना सुनिश्चित करें। आदेश में यह भी उल्लेख है कि इसे “सर्वोच्च प्राथमिकता” दी जाए। यह आदेश तब सामने आया जब स्थानीय स्कूल स्टाफ द्वारा आपत्ति जताई गई कि जिन कर्मचारियों की नियुक्ति बच्चों को पोषणयुक्त भोजन देने के लिए हुई है, उन्हें एक राजनीतिक रैली में भेजना उनके कार्य क्षेत्र के बाहर है और यह श्रम का शोषण है।
कौन हैं कुक कम हेल्पर?
कुक कम हेल्पर मिड-डे मील योजना के अंतर्गत सरकारी स्कूलों में कार्यरत वे महिलाएँ होती हैं, जो भोजन पकाने, परोसने और स्वच्छता सुनिश्चित करने का कार्य करती हैं। इनका मानदेय बेहद कम होता है और अधिकतर महिला कर्मचारी आर्थिक रूप से बेहद कमजोर तबके से आती हैं।
राजनीतिक लाभ के लिए प्रशासनिक संसाधनों का उपयोग?
जानकारों का मानना है कि यह आदेश एक प्रकार से प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग है। शिक्षाविद् डॉ. रमेश चौधरी कहते हैं, “जब सरकारी कर्मचारी, खासकर संविदा पर कार्यरत महिलाएँ, जो अधिकारों के प्रति पूरी तरह जागरूक नहीं हैं, उन्हें इस प्रकार राजनीतिक कार्यक्रमों में भेजा जाता है, तो यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।” विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सरकार स्कूलों की ज़िम्मेदारी निभाने वाली कर्मचारियों को भीड़ के रूप में इस्तेमाल कर रही है, जो बेहद निंदनीय है।
क्या यह आम चलन बन चुका है?
दुर्भाग्यवश, भारत में यह कोई नई बात नहीं है। सत्ता में रहने वाली लगभग हर पार्टी पर समय-समय पर इस प्रकार के आरोप लगते रहे हैं कि वे अपनी रैलियों और सभाओं में सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करते हैं। संविदा कर्मचारियों को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है क्योंकि उनकी नौकरी असुरक्षित होती है और वे विरोध करने में झिझकते हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने इस आदेश को वापस लेने और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की है। साथ ही, शिक्षा विभाग से यह स्पष्ट करने को कहा गया है कि क्या मिड-डे मील योजना के कर्मचारियों को राजनीतिक आयोजनों में भाग लेने के लिए बाध्य किया जा सकता है।