जोधपुर, राजस्थान: एक समय में जोधपुर और आसपास के गांवों की जीवनरेखा रही जोजरी नदी आज गंभीर प्रदूषण के चलते दम तोड़ रही है। यह नदी जोधपुर शहर से निकलकर नागौर जिले तक जाती है, लेकिन अब यह नदी नहीं, बल्कि एक खुली नाली बन चुकी है। इसमें जोधपुर के विभिन्न औद्योगिक इकाइयों और घरेलू सीवरेज से निकलने वाला अपशिष्ट मिल रहा है, जिससे नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
जोजरी नदी में जा रहा जहरीला जल
जोज़री नदी में मुख्य रूप से पर्चिंग, डाईंग, टेक्सटाइल, चमड़ा उद्योग, स्टील फैक्ट्रियाँ, और कई रासायनिक इकाइयों का अवशिष्ट पानी डाला जाता है। जोधपुर के विवेक विहार, बनाड इंडस्ट्रियल एरिया, बासनी, संगरिया और सालावास इंडस्ट्रियल ज़ोन से ये फैक्ट्रियाँ बड़ी मात्रा में बिना ट्रीटमेंट किए अपशिष्ट नदी में छोड़ती हैं। इन फैक्ट्रियों में पानी का इस्तेमाल भारी मात्रा में होता है, जो बाद में विषैले रसायनों से भरकर बाहर निकाला जाता है। कई छोटी फैक्ट्रियाँ तो बिना किसी रजिस्ट्रेशन या मान्यता के काम कर रही हैं और खुलेआम नदी में केमिकलयुक्त पानी बहा रही हैं। जल शोधन संयंत्रों की अनुपस्थिति या निष्क्रियता इस समस्या को और अधिक गंभीर बना रही है।
वैज्ञानिक रिपोर्टें दे रही हैं खतरे का संकेत
राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (RSPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, जोजरी नदी का बीओडी (Biochemical Oxygen Demand) और सीओडी (Chemical Oxygen Demand) स्तर खतरनाक हद तक पहुंच गया है। इसका मतलब है कि पानी में जीवन के लिए जरूरी ऑक्सीजन न के बराबर है। विशेषज्ञों का मानना है कि नदी में भारी धातुओं और जहरीले रसायनों की मात्रा इतनी अधिक हो चुकी है कि मिट्टी और पानी में जैव विविधता पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। यदि इस प्रदूषण को समय रहते नहीं रोका गया, तो यह पूरे पश्चिमी राजस्थान के पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ सकता है। नदी के प्रदूषण से भूजल स्तर भी खतरनाक रूप से प्रभावित हो रहा है।
किसानों और ग्रामीणों की पीड़ा
जोजरी नदी के किनारे बसे गांवों के किसान अब जहरीले पानी से मजबूरी में सिंचाई कर रहे हैं। कई किसानों ने बताया कि पहले जहां गेहूं और जौ की अच्छी फसल होती थी, अब वही जमीन बंजर होती जा रही है। फसलों का रंग बदल गया है और उत्पादन घट गया है। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में बीमारियाँ बहुत बढ़ गई हैं। बच्चों में त्वचा की एलर्जी, उल्टी-दस्त और साँस संबंधी परेशानियाँ आम हो गई हैं। पशुपालन करने वाले लोग बताते हैं कि जानवर पानी पीकर बीमार पड़ जाते हैं और दूध उत्पादन घट गया है। उनकी आजीविका भी अब इस जहरीले पानी से प्रभावित हो रही है।
प्रशासन और न्यायालय का ढीला रवैया
राजस्थान हाईकोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) कई बार जोजरी नदी प्रदूषण पर टिप्पणी कर चुके हैं। अदालतों ने नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिए थे कि वे सख्त कदम उठाएं, लेकिन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) आज भी या तो अधूरे हैं या अपनी क्षमता से कम कार्य कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन सिर्फ नोटिस देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है। फैक्ट्रियों से रिश्वत लेकर नियमों की अनदेखी की जा रही है। यहां तक कि जिन फैक्ट्रियों को बंद किया जाना चाहिए, वे आज भी चालू हैं। सरकारी योजनाएं ज़मीन पर उतर नहीं पा रही हैं और केवल रिपोर्टों तक सीमित हैं।
समाधान क्या हो सकता है?
1. सभी उद्योगों को अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र (ETP) लगाने के निर्देश दिए जाएं और उसका नियमित निरीक्षण हो।
2. सभी मौजूदा CETP को क्षमता के अनुसार चालू किया जाए।
3. घरेलू सीवरेज को ट्रीट करने के लिए नगर निगम को STP की व्यवस्था तुरंत करनी चाहिए।
4. प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ जुर्माना नहीं, बल्कि उत्पादन बंदी तक की कार्रवाई हो।
5. ग्रामीणों और स्थानीय लोगों को जल गुणवत्ता निगरानी में शामिल किया जाए।
इसके अतिरिक्त, सरकार को चाहिए कि वह एक स्वतंत्र निगरानी समिति गठित करे जो उद्योगों की अपशिष्ट जल निकासी की निगरानी करे। सार्वजनिक शिकायत प्रणाली को मज़बूत बनाकर आम नागरिकों को पर्यावरण प्रहरी की भूमिका दी जा सकती है। साथ ही नदी पुनर्जीवन योजना के तहत सरकारी व निजी भागीदारी से जोजरी को पुनर्जीवित करने के प्रयास तेज़ करने होंगे। जोजरी नदी आज एक पर्यावरणीय आपदा में तब्दील हो चुकी है। इसे बचाने के लिए अब सिर्फ योजनाओं या वादों की नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई की जरूरत है। यदि यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में यह नदी पूरी तरह मृतप्राय हो जाएगी और इसके साथ-साथ जोधपुर का भूजल, कृषि और जीवन भी बर्बादी की कगार पर पहुँच जाएगा। आज जरूरत है कि हम नदी को फिर से “जीवंत” बनाने का संकल्प लें, जिससे अगली पीढ़ी को सुरक्षित पानी, खेती और स्वास्थ्य मिल सके। अब भी समय है, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।