हाल ही में राजस्थान में ग्रुप D के अंतर्गत चपरासी की 54,000 रिक्तियों के लिए आवेदन मांगे गए थे। चौंकाने वाली बात यह रही कि इन पदों के लिए लगभग 25 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया। लेकिन इससे भी ज़्यादा हैरानी की बात यह रही कि इन आवेदनों में बड़ी संख्या में PhD, MBA, LLB, LLM, MEd और MPhil जैसी उच्च डिग्रियों वाले युवा भी शामिल थे।
यह सवाल उठता है कि जब इतनी योग्यता रखने वाले युवा एक चपरासी की नौकरी के लिए कतार में खड़े हैं, तो इसकी असल वजह क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ़ बेरोज़गारी की मार नहीं है, बल्कि एक सोच की हार भी है। आज का युवा सुरक्षित भविष्य की चाह में सरकारी नौकरी को एकमात्र विकल्प मान बैठा है। उसे अपने कौशल, नवाचार, और उद्यमिता पर उतना भरोसा नहीं, जितना एक “सेफ जॉब” पर है। यह चलन सिर्फ़ नौकरी बाज़ार के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी चिंताजनक है। इससे न सिर्फ़ ग्रुप D की नौकरियों में ज़रूरतमंद और योग्य उम्मीदवारों के अवसर छिनते हैं, बल्कि ये उच्च डिग्रीधारी युवा अपने हुनर और शिक्षा का समुचित उपयोग नहीं कर पाते।
सवाल यह है कि क्या हम सिर्फ़ सरकार को दोष देकर अपनी ज़िम्मेदारियों से बच सकते हैं? या अब समय आ गया है कि युवा भी अपने भीतर झांकें और रोज़गार के नए रास्ते स्वरोजगार, और स्टार्टअप कल्चर की ओर कदम बढ़ाएं?