जोधपुर में आयोजित एक हाई-लेवल बैंकर्स मीट में कृषि वित्तपोषण को लेकर अहम चर्चा हुई, जिसमें एफपीओ (फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन), एफपीसी (फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी) और छोटे कृषि उद्यमों के लिए आसान ऋण सुविधाएं, सब्सिडी योजनाएं और आधारभूत संरचना विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मंथन हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन नाबार्ड और दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (SABC) की संयुक्त पहल के तहत किया गया।
बैठक में राजस्थान की कृषि अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के उद्देश्य से कार्यशील पूंजी, कृषि प्रसंस्करण इकाइयों को सुलभ ऋण प्रणाली, डिजिटल भुगतान, और ग्रामीण वित्तीय जागरूकता पर विशेष जोर दिया गया। एफपीओ को वित्तपोषण में आ रही चुनौतियों पर ठोस समाधान प्रस्तुत किए गए, ताकि उन्हें आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सक्षम बनाया जा सके। इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में नाबार्ड, ICICI बैंक, राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक (RMGB), मसाला बोर्ड, कृषि वैज्ञानिकों, उद्यमियों और 15 से अधिक बैंकों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
SABC निदेशक डॉ. भागीरथ चौधरी ने कहा कि पश्चिमी राजस्थान में कृषि निवेश के लिए आधारभूत ढांचे और ऋण सहायता को मजबूत करना वक्त की ज़रूरत है। जोधपुर को कृषि-वित्त नवाचार की नई प्रयोगशाला के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिससे पूरे राज्य को लाभ मिलेगा। यह सम्मेलन कृषि क्षेत्र को मजबूत वित्तीय आधार देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
ऑर्गेनिक खेती की तरफ भी बढ़ाने होंगे कदम
पेस्टिसाइड्स और इंसेक्टिसाइड पर निर्मित केमिकल खेती में भले ही कितनी ही पूंजी आ जाए, यह हमेशा इस शेरों पर निर्मित रखेगी, यानी जो भी उत्पादन होगा उसका एक बड़ा हिस्सा इस शेरों को बचना होगा ताकि इसका ऋण चुकता हो सके। अगर गांव का सच में विकास करना है ताकि उनका हाल डोली गांव जैसा न हो, तो ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना होगा, जिसमें बैंकों की भूमिका को बिल्कुल कम करना होगा। केमिकल खेती पर निर्भरता कम करके हमें ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़ना होगा।