जोधपुर: कीर्तिनगर, हुड़को क्वार्टर में रहने वाली 26 वर्षीय दलित युवती कविता चौहान की आत्महत्या ने न सिर्फ पूरे जोधपुर को झकझोर दिया है, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता को भी बेनकाब कर दिया है। कविता की मौत अब एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की लड़ाई बन चुकी है — एक अधूरी कहानी, जो न्याय की उम्मीद में मोर्चरी में दो दिन से इंतजार कर रही है।
एक छोटी सी बात, एक बड़ा अन्याय
30 अप्रैल को कविता की मां बिंदुदेवी से पानी के छींटे पड़ोसी शंकर विश्नोई की एसयूवी पर गिर गए। बात इतनी बढ़ी कि शंकर, उनकी पत्नी और बेटों ने बिंदु, कविता और उनके भाई आनंद पर हमला कर दिया। मारपीट और अभद्रता की गई। कविता की छाती और हाथों पर नाखून के गहरे निशान थे।
पीड़ित परिवार इंसाफ की आस में थाने पहुंचा, लेकिन पुलिस ने 9 घंटे बैठाकर सिर्फ शांतिभंग की मामूली कार्रवाई की, जबकि गंभीर धाराओं में केस बनता था।
कविता की आत्महत्या और सुसाइड नोट का सच
2 मई को कविता ने घर में फांसी लगा ली। सुसाइड नोट में थानाधिकारी भंवरसिंह जाखड़ और पार्षद जानीदेवी पर दबाव बनाने के आरोप लगाए। कविता की आत्मा को यह सिस्टम हरा चुका था। उसने लिखा— “अब सब साथ हैं। वही लोग जो तब नहीं थे जब ज़रूरत थी। क्या मेरे मरने का ही इंतजार था?”
धरना, विरोध और आंदोलन: अब समाज बोला है
व्यापारियों ने बाजार बंद रखा और रास्ते बंद करवाकर समर्थन जताया। सर्व समाज धरने पर बैठा, पुलिस और प्रशासन से पांच दौर की वार्ता हुई। मांगे: सभी आरोपियों की गिरफ्तारी, थानाधिकारी का निलंबन, पीड़ित परिवार को सरकारी नौकरी और सुरक्षा। रात 9:30 बजे पुलिस ने बारिश में टेंट और बैनर उखाड़कर हल्का बल प्रयोग किया, लेकिन सहमति नहीं बनी। कविता का शव अब भी पोस्टमार्टम के इंतजार में है।
राजनीतिक हलचल और समर्थन
राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात कर न्याय की मांग की। हनुमान बेनीवाल ने भी पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने राज विश्नोई को डिटेन किया, लेकिन अब तक कार्रवाई अधूरी।
कविता की मौत का सवाल: क्या अब भी सिस्टम जागेगा?
कविता की आत्महत्या ने पूरे सिस्टम को आईना दिखा दिया है। एक शिक्षित युवती, जिसने अपने हक के लिए आवाज उठाई, लेकिन उसे सिर्फ अपमान, मारपीट और अनसुनी मिलती रही। अब उसकी मौत पर सारा शहर खड़ा है—लेकिन क्या उसके जीते-जी साथ होते तो कविता जिंदा होती? इंसाफ कविता के लिए नहीं, हर उस लड़की के लिए चाहिए जो सिस्टम से हार मान रही है। कविता की अधूरी कहानी को समाज को पूरा करना चाहिए।