जालौर, 3 जून: “मरकर भी चैन न पाया”ये कहावत जालौर जिले में हाल ही की एक पुलिस कार्रवाई पर सटीक बैठती है। जिले की पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति को आरोपी बताया है जिसकी मृत्यु तीन महीने पहले ही हो चुकी है इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि जालौर पुलिस ने न केवल मृत व्यक्ति को आरोपी बनाया, बल्कि अपने आधिकारिक X (Twitter) हैंडल पर उसकी “गिरफ्तारी” का दावा भी कर डाला। जैसे ही यह मामला सामने आया, पूरे जिले में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे। स्थानीय नागरिकों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस घटना को “गैरजिम्मेदाराना” और “बेहद शर्मनाक” बताया है।
क्या यह एक तकनीकी भूल थी, या पर्दे के पीछे कुछ और है?
पुलिस द्वारा आरोपी के नाम की पुष्टि के बिना सार्वजनिक घोषणा करना न केवल एक प्रशासनिक चूक है, बल्कि यह पीड़ित परिवार के लिए मानसिक आघात का कारण भी बन गया है। अब सवाल यह उठता है क्या पुलिस ने दस्तावेज़ जांच किए बिना ही कार्रवाई दिखाने के लिए आंकड़ों का हेरफेर किया? या फिर किसी अन्य को बचाने के लिए मृत व्यक्ति को मोहरा बनाया गया?
स्थानीय संगठनों ने मामले की न्यायिक जांच की मांग की है।
जालौर पुलिस से संपर्क करने पर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं मिला है। इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है जब कानून के रखवाले ही लापरवाह हो जाएं, तो आम जनता किस पर भरोसा करे?