नई दिल्ली: भारत में सिंधु नदी के जल को पंजाब, राजस्थान और कच्छ जैसे शुष्क क्षेत्रों तक पहुँचाने की चर्चा लंबे समय से चल रही है। हाल ही में प्रकाशित एक लेख ने इस बहस को नया आयाम दे दिया, जिसमें सुझाव दिया गया कि भारत को इस दिशा में लीबिया के कर्नल मुअम्मर गद्दाफ़ी के “ग्रेट मैन मेड रिवर प्रोजेक्ट” से प्रेरणा लेनी चाहिए।
गद्दाफ़ी के राज में ‘रेत के नीचे बहता था पानी’
1980 के दशक में जब लीबिया के सहारा रेगिस्तान में पानी की भारी कमी थी, तब कर्नल गद्दाफ़ी ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया। उन्होंने 1200 किलोमीटर लंबी अंडरग्राउंड पाइपलाइन नदी बनवाई, जो भूमिगत जलस्रोतों से पानी निकालकर रेगिस्तान के पार कृषि और शहरों तक पहुँचाती थी। इस प्रोजेक्ट को विश्व की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में गिना जाता है।
भारत के लिए क्या है सबक?
भारत में सिंधु जल समझौता समाप्ति की चर्चा के साथ अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत सिंधु नदी के जल को विशाल अंडरग्राउंड पाइपलाइन नेटवर्क से राजस्थान और कच्छ तक ला सकता है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीकी रूप से संभव है, यदि लीबिया जैसे सीमित संसाधनों वाले देश ने यह कर दिखाया, तो भारत के लिए यह चुनौती नहीं, अवसर हो सकता है। रेगिस्तानी भू-भाग में नहरें बनाना मुश्किल है, लेकिन पाइपलाइन टेक्नोलॉजी एक व्यवहारिक विकल्प हो सकता है।
यदि भारत सिंधु जल को लेकर रणनीतिक संकल्प लेता है और वैश्विक उदाहरणों से सीखकर तकनीकी नवाचार करता है, तो राजस्थान, पंजाब, गुजरात जैसे जल-संकटग्रस्त राज्यों में हरियाली की क्रांति लाई जा सकती है। और शायद, यह समय है कि हम “सपनों में नदी” नहीं, बल्कि धरती के नीचे से बहती वास्तविक नदी की ओर कदम बढ़ाएं।