CBSE (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) ने हाल ही में एक अहम फैसला लेते हुए सभी संबद्ध स्कूलों को अपने यहां “शुगर बोर्ड” लगाने का निर्देश दिया है। इस फैसले का उद्देश्य बच्चों में अत्यधिक चीनी (शुगर) के सेवन को लेकर जागरूकता फैलाना है ताकि उन्हें भविष्य में होने वाली बीमारियों, जैसे मोटापा, मधुमेह (डायबिटीज) और दांतों की समस्याओं से बचाया जा सके।

CBSE के मुताबिक, भारत में 4 से 10 साल के बच्चे अपनी कुल कैलोरी का करीब 13% और 11 से 18 साल के किशोर 15% से ज्यादा कैलोरी केवल शुगर से ले रहे हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के अनुसार यह मात्रा 5% से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस समस्या को गंभीर मानते हुए CBSE ने सभी स्कूलों को निर्देशित किया है कि वे एक ऐसा सूचना बोर्ड लगाएं जिस पर बच्चों को यह बताया जाए कि वे प्रतिदिन कितनी चीनी ले सकते हैं, किन-किन सामान्य खाद्य पदार्थों में कितनी चीनी होती है और किस तरह अधिक चीनी उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है।

इसके अलावा, स्कूलों को इस विषय पर जागरूकता सेमिनार और कार्यशालाएं भी आयोजित करनी होंगी, जिसमें छात्र, अभिभावक और शिक्षक भाग लेंगे। स्कूलों को इन गतिविधियों की रिपोर्ट और तस्वीरें 15 जुलाई 2025 तक CBSE को भेजनी होंगी। इस पहल का स्वागत देशभर में हो रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से बच्चों में बचपन से ही अच्छे खानपान की आदतें विकसित होंगी और वे जंक फूड तथा अधिक मीठे पदार्थों से दूर रहेंगे।

 

इसके साथ ही, कुछ स्कूल अब बच्चों की स्वास्थ्य जांच में शुगर लेवल की जांच भी शामिल करने पर विचार कर रहे हैं, ताकि समय रहते कोई स्वास्थ्य समस्या सामने आ जाए तो उसका इलाज हो सके। इस पहल का समर्थन करने के लिए कुछ कंपनियाँ भी आगे आई हैं, जैसे Go Zero Ice Creams, जो बिना शुगर के हेल्दी आइसक्रीम बना रही हैं। वे मानते हैं कि बच्चों को मिठाई या स्वाद से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें ऐसे विकल्प दिए जाने चाहिए जो स्वादिष्ट भी हों और सेहतमंद भी। कुल मिलाकर, CBSE की यह पहल एक सकारात्मक शुरुआत है जो बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य, जागरूकता और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है। अब जरूरत है कि स्कूल, माता-पिता और समाज मिलकर इस दिशा में काम करें ताकि आने वाली पीढ़ी न केवल पढ़ाई में बल्कि सेहत में भी सबसे आगे हो।

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