जयपुर/कोटा: राजस्थान हाईकोर्ट ने भाजपा के अंता से विधायक कंवरलाल मीणा को झटका देते हुए उनके खिलाफ 20 साल पुराने आपराधिक मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई तीन साल की सजा को बरकरार रखा है। यह फैसला राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर चुका है, और अब उनकी विधानसभा सदस्यता पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
क्या है मामला?
यह मामला 3 जनवरी 2005 का है, जब कंवरलाल मीणा ने झालावाड़ जिले के खानपुर में तत्कालीन उपखंड अधिकारी (SDM) रामनिवास मेहता से विवाद के दौरान उनकी कनपटी पर पिस्तौल तान दी थी और जान से मारने की धमकी दी थी। यह घटना उस समय प्रशासनिक हलकों में बेहद गंभीर मानी गई थी, और मीणा के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था। करीब दो दशक तक यह मामला कानूनी प्रक्रिया में रहा, और आखिरकार झालावाड़ की निचली अदालत ने उन्हें तीन साल की सजा सुनाई। अब राजस्थान हाईकोर्ट ने भी उस सजा को सही ठहराते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है।
सदस्यता पर खतरा: विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव
इस फैसले के बाद राजस्थान विधानसभा में उनके विधायक पद को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। संविधान के अनुसार, अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो उसकी सदस्यता स्वत: निरस्त हो जाती है। हालांकि इसके लिए विधानसभा अध्यक्ष को औपचारिक निर्णय लेना होता है। कांग्रेस विधायक दल की ओर से नेता प्रतिपक्ष श्री टिकाराम जूली ने इस मुद्दे को गंभीर बताया है और सोमवार को विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी से मिलकर कंवरलाल मीणा की सदस्यता को अविलंब अयोग्य घोषित करने की मांग करेंगे।
श्री जूली ने ट्वीट कर कहा,
“राजस्थान हाईकोर्ट ने भाजपा विधायक को दोषी ठहराते हुए 3 साल की सजा बरकरार रखी है। विधानसभा अध्यक्ष श्री देवनानी को इस पर स्वत: संज्ञान लेकर सदस्यता निरस्त करनी चाहिए।”
भाजपा की चुप्पी पर सवाल
इस मुद्दे पर जहां कांग्रेस हमलावर दिख रही है, वहीं भाजपा खेमे की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। पार्टी की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा इस मामले को ‘व्यक्तिगत’ मानकर दूरी बनाए रखेगी, या संगठनात्मक कार्रवाई की ओर बढ़ेगी।
क़ानूनी और संवैधानिक पहलू
भारतीय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के तहत यदि कोई सांसद या विधायक दो साल या उससे अधिक की सजा पाए, तो वह तत्काल प्रभाव से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। हालांकि यदि अदालत से स्थगन आदेश (Stay) मिल जाए, तो सदस्यता कुछ समय के लिए बरकरार रह सकती है।
वर्तमान में यह स्पष्ट नहीं है कि कंवरलाल मीणा को हाईकोर्ट से अगली अपील या राहत की संभावना है या नहीं।
जनता और विपक्ष की प्रतिक्रिया
स्थानीय स्तर पर भी इस खबर से हलचल है। अंता विधानसभा क्षेत्र में कई सामाजिक संगठनों और नागरिक मंचों ने इस मुद्दे को लेकर सवाल उठाए हैं कि क्या ऐसे जनप्रतिनिधि को जनता की सेवा का अधिकार होना चाहिए, जिनके ऊपर गंभीर आपराधिक आरोप साबित हो चुके हों।
राजस्थान के अंता विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की कानूनी मुश्किलें अब सियासी मोड़ लेती नजर आ रही हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले ने न सिर्फ उनके राजनीतिक करियर को झटका दिया है, बल्कि यह पूरे राज्य में जनप्रतिनिधियों की आचरण और पात्रता को लेकर नई बहस को जन्म दे रहा है। अब सबकी निगाहें विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर हैं कि वे इस मामले में क्या रुख अपनाते हैं।