राजस्थान के जालोर जिले के रानीवाड़ा की बड़गांव मोजड़ियां अब सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी हैं। हस्तनिर्मित चमड़े की जूतियों की यह विरासत आज देश-विदेश में अपनी कला और गुणवत्ता के लिए जानी जाती है।

हल्की, टिकाऊ और जेब में समा जाने वाली जूतियां

बड़गांव की मोजड़ियां न केवल खूबसूरत डिज़ाइन में मिलती हैं, बल्कि वजन में भी बेहद हल्की होती हैं — मात्र 400 ग्राम। इन्हें इतनी सफाई से तैयार किया जाता है कि इन्हें मोड़कर जेब में रखा जा सकता है। हाथ से की गई बारीक कढ़ाई इनकी खास पहचान है।

पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक विरासत

इस कारीगरी की नींव वरिष्ठ शिल्पकार पुखराज जीनगर ने रखी थी। आज उनका बेटा किशोर कुमार जीनगर इस विरासत को आगे बढ़ा रहा है, जिसमें उनकी पत्नी भी सहयोग करती हैं। यह पूरी प्रक्रिया आज भी पारंपरिक तकनीकों पर आधारित है।

राष्ट्रीय पहचान और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज नाम

साल 2022 में जालोर महोत्सव के दौरान 1,275 लोगों ने बड़गांव की मोजड़ियां पहनकर एक रिकॉर्ड बनाया, जो इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ। राजीव गांधी, प्रतिभा पाटिल और भैरोसिंह शेखावत जैसी हस्तियां भी इन जूतियों को अपना चुकी हैं।

आज भी ऊंची है मांग, सम्मान से बढ़ा आत्मविश्वास

शादी-ब्याह और त्योहारों में इनकी मांग काफी अधिक होती है। किशोर कुमार को उनके काम के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। वे हर जोड़ी जूती को एक अनूठी कला का रूप देते हैं, जिससे यह परंपरा आज भी जीवित और प्रासंगिक बनी हुई है।

संस्कृति की सुगंध, परंपरा की पहचान

बड़गांव की मोजड़ियां न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक आत्मा को दर्शाती हैं, बल्कि यह साबित करती हैं कि हमारी परंपराएं आज भी ग्लोबल पहचान बना सकती हैं।

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version