भारतीय लेखिका, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक ने अपनी कन्नड़ भाषा में लिखी लघुकथा संग्रह ‘Heart Lamp’ के लिए इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार 2025 जीतकर इतिहास रच दिया है। यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ भाषा की पुस्तक और लघुकथा संग्रह को यह प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
‘Heart Lamp’ में 12 कहानियाँ हैं, जो दक्षिण भारत की मुस्लिम और दलित महिलाओं के संघर्षों और अनुभवों को अभिव्यक्त करती हैं। इनका अंग्रेज़ी अनुवाद दीपा भास्ती ने किया है, जो इस पुरस्कार को जीतने वाली पहली भारतीय अनुवादक बनीं। पुरस्कार समारोह लंदन के टेट मॉडर्न में आयोजित हुआ।
पुरस्कार ग्रहण करते हुए बानू मुश्ताक ने कहा,
“मैं इसलिए लिखती हूँ क्योंकि उनका दर्द मुझे सोने नहीं देता। यह पुरस्कार मेरा नहीं, उन सभी महिलाओं का है जिनकी आवाज़ अब दुनिया तक पहुंची है। यह विविधता की जीत है जो संभव हुई अनुवाद के माध्यम से और उनकी अनुवादक दीपा भास्ती की वजह से। इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार की पुरस्कार राशि £50,000 लेखक और अनुवादक के बीच समान रूप से बाँटी जाती है।
कितने भारतीय अब तक यह पुरस्कार जीत चुके हैं?
बानू मुश्ताक इस पुरस्कार को जीतने वाली तीसरी भारतीय मूल की लेखिका बनी हैं, लेकिन यदि बात मूल भारतीय भाषाओं में लिखे गए कार्यों की हो, तो वह केवल दूसरी लेखिका हैं। पहली बार, 2022 में गीतांजलि श्री ने अपनी हिंदी उपन्यास ‘Ret Samadhi’ (Tomb of Sand) के लिए यह पुरस्कार जीता था, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद डेज़ी रॉकवेल ने किया था। बानू मुश्ताक ने अब कन्नड़ भाषा को इस गौरव तक पहुँचाकर भारतीय भाषाओं के वैश्विक महत्व को और मजबूत किया है।
इस ऐतिहासिक सफलता पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, सांसद शशि थरूर, और पूरे देश ने उन्हें बधाई दी है। ‘Heart Lamp’ की जीत न सिर्फ कन्नड़ भाषा बल्कि भारतीय भाषाओं की साहित्यिक समृद्धि और वैश्विक पहचान की एक बड़ी मिसाल बन गई है।