राजस्थान के एक सरकारी अस्पताल में 19 वर्षीय कोमल गुर्जर की डिलीवरी के दौरान हुई मौत ने एक बार फिर से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं। जिला महिला एवं बाल विकास चिकित्सालय पांचली में हुई इस घटना के बाद अस्पताल प्रशासन के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों द्वारा इलाज में लापरवाही बरती गई और उनसे जबरन पैसे मांगे गए, जिससे इलाज की गुणवत्ता प्रभावित हुई। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकारी अस्पतालों में सुधार की सख्त आवश्यकता है।
कोमल गुर्जर की मौत: एक दुखद घटना
कोमल गुर्जर को जब अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तो डॉक्टरों ने नॉर्मल डिलीवरी की बात की थी, लेकिन इलाज में देरी और लापरवाही के कारण उसकी हालत बिगड़ गई। डॉक्टर निर्मला मेघवाल ने परिवार से सहयोग राशि की मांग की थी, और जब परिवार वालों ने राशि देने से इनकार किया तो डॉक्टर ने ऑपरेशन से डिलीवरी कराने की बात कही। अंततः कोमल ने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन ऑपरेशन के दौरान ब्लीडिंग की समस्या के कारण उसकी हालत बिगड़ गई और उसने दम तोड़ दिया। इसके बाद परिजनों ने आरोप लगाया कि डॉक्टरों ने लापरवाही बरती और पैसे मांगने का प्रयास किया।
डॉक्टर की निलंबन की मांग और विरोध प्रदर्शन
इस घटना के बाद, प्रदर्शनकारियों ने डॉक्टर निर्मला मेघवाल को तत्काल निलंबित करने की मांग की और मृतका के परिजनों को 50 लाख रुपये मुआवजा देने की बात उठाई। उनका आरोप था कि सरकारी अस्पतालों में आए दिन मरीजों से पैसे मांगे जाते हैं और जिनसे पैसे नहीं मिलते, उनका इलाज सही से नहीं किया जाता। यह समस्या सरकारी अस्पतालों में एक आम मुद्दा बन चुकी है, जिसे सुलझाने की आवश्यकता है।
क्या सिर्फ डॉक्टर का निलंबन समस्या का हल है?
इस मामले में एक सवाल यह भी उठता है कि केवल डॉक्टर को निलंबित करने से क्या समस्या का समाधान होगा? यदि सच में सिस्टम को बदलना है तो सबसे पहले सरकारी अस्पतालों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं को दुरुस्त करना होगा। अस्पतालों में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की सही संख्या में आपूर्ति करनी होगी, और साथ ही साथ मरीजों के साथ उचित व्यवहार और समय पर इलाज भी सुनिश्चित करना होगा।
बुद्धिजीवियों का कहना है कि केवल डॉक्टर को निलंबित करने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि एक ठोस सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता है। सरकारी अस्पतालों की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि अक्सर मरीजों को ठीक से इलाज नहीं मिलता। साथ ही, यहां पर बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी भी है।
राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में सुधार की जरूरत
राजस्थान के सरकारी अस्पतालों की हालत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। जहां एक ओर सरकार टॉप मेडिकल इंस्टीट्यूट्स बनाने पर ध्यान दे रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार की कोई योजना नहीं है। खासकर ग्रामीण इलाकों में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। उदाहरण के तौर पर, अलवर के एक अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं है और केवल सफाई कर्मचारी सुबह आकर झाड़ू लगा कर चले जाते हैं। यह स्थिति न केवल मरीजों के लिए बल्कि पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन चुकी है।
सरकारी अस्पतालों में मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण मरीजों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है, जहां इलाज महंगा होता है और गरीब वर्ग को इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती। यह समस्या केवल डॉक्टरों की कमी तक सीमित नहीं है, बल्कि अस्पतालों में संसाधनों की भी भारी कमी है।
सुधार के उपाय
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डॉक्टरों की संख्या में वृद्धि: सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए अधिक डॉक्टरों की नियुक्ति की जानी चाहिए। इसके लिए सरकार को मेडिकल कॉलेजों से डॉक्टरों की आपूर्ति बढ़ानी होगी।
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संसाधनों की आपूर्ति: अस्पतालों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं की आपूर्ति बढ़ानी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि अस्पतालों में जरूरी उपकरण और दवाइयां उपलब्ध हों।
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प्रशासनिक सुधार: अस्पतालों के प्रशासन में पारदर्शिता और जिम्मेदारी बढ़ानी होगी। अस्पतालों में लापरवाही को रोकने के लिए सख्त निगरानी व्यवस्था लागू की जानी चाहिए।
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सुविधाओं का विस्तार: अस्पतालों में मरीजों के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए सरकार को टॉप-नॉच हॉस्पिटल्स बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
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सामाजिक जागरूकता: सरकारी अस्पतालों में सुधार के लिए सामाजिक जागरूकता भी आवश्यक है। मरीजों और उनके परिवारों को अधिकारों और सेवाओं के बारे में जागरूक करना होगा।
कोमल गुर्जर की दुखद मृत्यु ने यह साबित कर दिया है कि राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में सुधार की अत्यधिक आवश्यकता है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सीय सुविधाओं, संसाधनों, और प्रशासन में सुधार के बिना, ऐसे मामलों का समाधान संभव नहीं है। केवल डॉक्टरों को निलंबित करने से स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा। इसलिए, इस समस्या का स्थायी समाधान तभी संभव है जब सरकारी अस्पतालों में ढांचागत सुधार और बेहतर प्रशासनिक तंत्र स्थापित किया जाएगा।