बोर्ड परीक्षाएं खत्म, फिर भी शिक्षकों के तबादले अटके
राजस्थान में शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार हर साल बोर्ड परीक्षाओं के बाद शिक्षकों के तबादलों की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। लेकिन वर्ष 2024 में स्थिति कुछ और ही है। 15 मार्च के बाद तबादले शुरू होने का सरकार द्वारा वादा किया गया था, लेकिन अप्रैल शुरू हो गया और तबादला नीति अब तक लागू नहीं हो पाई है।
इस देरी के विरोध में अब राज्यभर के शिक्षक सड़कों पर उतर आए हैं। शिक्षक संघों का कहना है कि यह केवल वादाखिलाफी ही नहीं बल्कि शिक्षकों के साथ प्रशासनिक अन्याय भी है।
राज्यभर में विरोध प्रदर्शन तेज
शिक्षक संघ एकीकृत के नेतृत्व में पूरे राजस्थान में शिक्षकों ने काली पट्टी बांधकर विरोध जताया। आंदोलन में दौसा से ऋषिराज यादव, कोटा से सविता मीणा, राजसमंद से महेश सहरावत, सिरोही से संजय सिंह, जैसलमेर से शंकर लाल रैबारी जैसे प्रमुख पदाधिकारी शामिल हुए।
इन शिक्षकों का कहना है कि जब तक मांगें नहीं मानी जातीं, तब तक यह आंदोलन चरणबद्ध तरीके से अनवरत जारी रहेगा। राज्य के सभी जिलों से शिक्षक इस प्रदर्शन में जुड़े हुए हैं, जिससे यह आंदोलन अब प्रदेशव्यापी रूप लेता जा रहा है।
तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले क्यों रुके?
सबसे ज्यादा असंतोष तृतीय श्रेणी शिक्षकों के बीच देखने को मिल रहा है। इनका कहना है कि वे वर्षों से दूरस्थ क्षेत्रों में सेवा दे रहे हैं, और तबादला नीति के तहत अब स्थानांतरण का उनका हक बनता है।
लेकिन शिक्षा विभाग द्वारा कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश या तिथि घोषित नहीं की गई है, जिससे भ्रम और नाराजगी की स्थिति बनी हुई है।
आंदोलन क्यों बना एक सामाजिक चिंता का विषय
जब देश में शिक्षक वर्ग ही आंदोलन के लिए मजबूर हो जाए, तो यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि बौद्धिक व्यवस्था में असंतुलन का संकेत भी होता है।
शिक्षक केवल स्थानांतरण नहीं, बल्कि सम्मान, पारदर्शिता और नीतिगत स्पष्टता की मांग कर रहे हैं। सरकार और शिक्षा विभाग को इस पर जल्द गौर करना होगा, वरना यह असंतोष भविष्य में शिक्षा व्यवस्था को और नुकसान पहुंचा सकता है।
क्या कहती है सरकार?
अब तक राज्य सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। शिक्षकों की नाराजगी को देखते हुए यह जरूरी है कि सरकार जल्द से जल्द तबादला नीति पर स्पष्टीकरण दे और प्रक्रिया शुरू करे।