भारत माता की गोद में अनेक ऐसे वीर और वीरांगनाएँ जन्मीं, जिन्होंने अपने विचारों, समर्पण और त्याग से देश को एक नई दिशा दी। इन्हीं में से एक थीं कस्तूरबा गांधी एक सरल, सशक्त और समर्पित महिला, जिनका जीवन केवल महात्मा गांधी की पत्नी होने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वे स्वयं एक प्रेरणा बन गईं। उनका जीवन आज की पीढ़ी के लिए न केवल एक आदर्श है, बल्कि यह बताता है कि नारी शक्ति किस प्रकार समाज में परिवर्तन ला सकती है।
एक साधारण बालिका से प्रेरणा स्रोत तक की यात्रा
कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 को हुआ था। वे बाल्यकाल से ही सरल, धार्मिक और दृढ़ नारी रही हैं। जिस उम्र में अधिकांश बच्चे शिक्षा और खेल में व्यस्त रहते हैं, उस उम्र में उनका विवाह हो जाता है, वे महज़ 13 वर्ष की उम्र में कस्तूरबा से कस्तूरबा गांधी हो जाती हैं और यहीं से शुरू होती है उनकी यात्रा एक साधारण बालिका से राष्ट्रपिता की अर्धांगिनी बनने की।
शादी के बाद उन्होंने न केवल एक आदर्श गृहिणी का जीवन जिया, बल्कि हर मोड़ पर अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं। यह साझेदारी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि वैचारिक और क्रांतिकारी भी थी।
संघर्ष की साथी, आंदोलन की अगुवा
जब महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता की लड़ाई की शुरुआत की, तब कस्तूरबा गांधी ने भी उनके संघर्ष को अपना संघर्ष माना। वे दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय रहीं और भारत लौटने के बाद सत्याग्रह, विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में उन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं, परन्तु अपने विचारों से कभी पीछे नहीं हटीं। यह उनके अदम्य साहस और दृढ़ता का प्रमाण है। उनका योगदान गांधीजी के पीछे खड़ी एक नारी का नहीं, बल्कि एक जागरूक और साहसी सेनानी का था, जो अपने बल पर भी आंदोलन की अगुआ बन सकती थी।
सादगी, सेवा और आत्मनिर्भरता की मिसाल
कस्तूरबा गांधी का जीवन सादगी, सेवा और आत्मनिर्भरता की मिसाल था। वे चरखा चलाती थीं, खादी पहनती थीं और जरूरतमंदों की सेवा में हमेशा तत्पर रहती थीं। उन्होंने आश्रमों में महिलाओं और बच्चों को स्वच्छता, शिक्षा और आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को संबल मिला। जब गांधीजी ने अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन छेड़ा, तब कस्तूरबा ने भी सक्रिय रूप से दलितों के साथ काम किया और समाज में समानता का संदेश दिया। उन्होंने यह साबित किया कि सेवा केवल शब्दों से नहीं, कर्म से होती है।
नारी सशक्तिकरण की सजीव मूर्ति
एक ऐसे समय में जब महिलाओं को केवल घर की चारदीवारी में सीमित किया जाता था, कस्तूरबा गांधी ने समाजसेवा, आंदोलन और शिक्षण जैसे क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाई। अहमदाबाद और पुणे जैसे शहरों में उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए विशेष प्रयास किए। उन्होंने महिलाओं को साफ-सफाई, प्राथमिक चिकित्सा और स्वावलंबन की शिक्षा दी, जिससे महिलाओं की स्थिति मजबूत हुई और वे आत्मनिर्भर बन सकीं।
आधुनिक भारत के लिए संदेश
कस्तूरबा गांधी का जीवन यह सिखाता है कि देशभक्ति केवल तलवार और शौर्य से नहीं, बल्कि त्याग, सेवा, करुणा और दृढ़ संकल्प से भी निभाई जा सकती है। वे भारतीय नारी शक्ति का ऐसा उदाहरण हैं, जिनके पदचिह्नों पर चलकर आज की पीढ़ी “मेरा भारत, मेरी शान” को एक नारा नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी के रूप में अपनाने की प्रेरणा पा सकती है। आज जब हम कस्तूरबा गांधी का जन्मदिवस मना रहे हैं, यह केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि उनके मूल्यों को आत्मसात करने का अवसर है। एक ऐसा भारत बनाने की आवश्यकता है जहाँ नारी का सम्मान हो, सेवा को प्रतिष्ठा मिले और हर नागरिक देश को अपनी पहचान और गौरव का हिस्सा माने।
कस्तूरबा गांधी का जीवन हमें सिखाता है कि चुपचाप चलने वाले कदम भी इतिहास की सबसे बड़ी गूंज बन सकते हैं। वे थीं नारी, पर केवल नाम की नहीं, बल्कि आदर्श की, प्रेरणा की और शक्ति की एक जीवंत मूर्ति।
– प्रेक्षा सूर्यवंशी
(लेखिका माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में जनसंचार विषय की छात्रा हैं )