जोधपुर जिले से महज़ 60 किलोमीटर दूर मेलबा और डोली गांवों में ज़िंदगी एक बदबूदार, ज़हरीली और असहनीय त्रासदी बन चुकी है। ग्रामीणों के लिए अब खाना खाना, सोना, सांस लेना – सब एक संघर्ष है। फैक्ट्रियों से निकलता ज़हरीला पानी, मच्छरों की भरमार और शासन-प्रशासन की चुप्पी ने इस गांव को ‘सजीव नरक’ में बदल दिया है।

गांव के लोग मौत से नहीं, ज़िंदगी से डरते हैं

मेलबा गांव की एक बुज़ुर्ग महिला बताती हैं,

“हमारे गांव में इतना ज़हर घुल गया है कि खाना खाते वक्त मच्छर गिरते हैं, रात को मच्छरदानी के बाहर बैठ भी नहीं सकते। सांस लेना भी मुश्किल है। बदबू इतनी है कि हर सांस मौत की याद दिलाती है।

गांव के लोग यह भी बताते हैं कि अब रिश्तेदार तक यहां आना नहीं चाहते।

जनप्रतिनिधि सिर्फ शोक सभाओं में आते हैं

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि विधायक जोगाराम पटेल और सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत सिर्फ शोक सभाओं में आते हैं, ताकि कोई सवाल न पूछे।

“नेताओं को जनता ने चुना था, लेकिन वो फैक्ट्री वालों से पैसा लेकर हमारे गांव को मौत की तरफ़ ढकेल रहे हैं। गांव की बैठकों में अब मंत्रीमंडल का मज़ाक बन चुका है।

“फैक्ट्री वालों से ले-दे कर मंत्री जी बैठे हैं। गांव में कोई योजना नहीं, कोई राहत नहीं।”ज़हरीले पानी की वजह से खेत बंजर हो गए हैं। ग्रामीण बताते हैं कि बीमा कंपनी क्लेम नहीं देती क्योंकि फसल बोई ही नहीं गई। “जब खेतों में ज़हर भरा हो, तो किसान बोए क्या और उगाए क्या?”महंगी-महंगी मच्छरदानियाँ लगाकर जानवरों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कब तक?

“मौत को भी मौत आ जाए इस हालात को देखकर। यहां तो पशुओं के लिए भी नरक बना दिया है सरकार ने।”

लोगों की सीधी मांग –

• प्रशासन मेलबा गांव में एक रात्रि चौपाल आयोजित करे

• हेलीकॉप्टर से मच्छरनाशक छिड़काव कराया जाए

• नाले की खुदाई कराई जाए ताकि पानी खेतों में न फैले

• टांकों और मकानों की मरम्मत, मच्छरदानी और कूलर वितरण

• और सबसे जरूरी – फैक्ट्रियों पर कार्रवाई, जिससे ये ज़हर गांवों तक पहुँच रहा है

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