बीकानेर/जालोर/जयपुर: राजस्थान के सूखा प्रभावित जिलों जालोर, सिरोही और बाड़मेर के किसानों को सिंचाई के लिए जिस परियोजना से दशकों पहले उम्मीदें बंधी थीं, वह आज भी सिर्फ कागज़ों में सिमटी है। गुजरात स्थित कड़ाणा बांध से राजस्थान को पानी दिलाने की योजना 1984 में गंभीरता से शुरू हुई थी, लेकिन आज तक धरातल पर नहीं उतर सकी। यह प्रोजेक्ट यदि समय पर क्रियान्वित हो जाता, तो 32 लाख बीघा जमीन सिंचित हो सकती थी।

इतिहास की परतें:

1979 में कड़ाणा बांध के निर्माण के बाद राजस्थान सरकार ने अपने हिस्से के पानी की मांग उठानी शुरू की थी। 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत और शिवचरण माथुर ने गुजरात सरकार से संवाद शुरू किया। 1988 में राजस्थान विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर डूंगरपुर से टिंबुरिया होकर भीनमाल तक सुरंग बनाने की योजना बनी थी।

RTI से खुलासा:

सूचना के अधिकार (RTI) के तहत सामने आए दस्तावेज बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट से राजस्थान को 28 TMC पानी मिल सकता था, जो नर्मदा परियोजना के तहत राजस्थान को मिल रहे पानी से डेढ़ गुना है। इस पानी से गुरुत्व प्रवाह के माध्यम से बिना किसी पंपिंग के ही पानी जालोर तक पहुंचाया जा सकता था।

वर्तमान स्थिति:

गुजरात इस बांध से 50 लाख बीघा क्षेत्र को सिंचित कर रहा है और राजस्थान के हिस्से का पानी वर्षों से अटका पड़ा है। 2015 में राजस्थान सरकार की एक एक्सपर्ट कमेटी ने रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि परियोजना तकनीकी रूप से संभव और व्यवहारिक है।

राजनीतिक और प्रशासनिक बाधाएं:

कई सरकारें बदलीं, पर इस प्रोजेक्ट पर ठोस पहल नहीं हो सकी। गुजरात की ओर से तकनीकी अनुमति और राजनीतिक सहमति नहीं मिलने के चलते यह प्रोजेक्ट आज भी अधर में है। हरीश बाबू, एक्सईएन, जल संसाधन विभाग, जालोर के अनुसार, “अगर यह प्रोजेक्ट शुरू होता है तो न केवल सूखे का समाधान मिलेगा बल्कि भूजल स्तर भी सुधरेगा और हजारों किसानों की जीविका सुरक्षित हो सकेगी।”

समाप्ति लेकिन आशा बाकी:

राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी जिलों के लिए यह परियोजना मात्र एक जल योजना नहीं, बल्कि एक आर्थिक और सामाजिक पुनर्जीवन की नींव हो सकती है। अब समय है कि राज्य और केंद्र सरकारें मिलकर इस बहुआयामी योजना पर ठोस और निर्णायक पहल करें।

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