जैसलमेर/बाड़मेर, राजस्थान : राजस्थान के थार रेगिस्तान में तेजी से फैल रही ग्रीन एनर्जी परियोजनाएं अब पर्यावरणीय संकट का रूप ले चुकी हैं। जहां एक ओर देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की होड़ है, वहीं दूसरी ओर इस अति संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र की जैवविविधता (Biodiversity), संस्कृति और समुदायों की आजीविका को गहरा नुकसान हो रहा है। पिछले एक दशक में जैसलमेर, बाड़मेर और आसपास के मरुस्थलीय (desert) क्षेत्रों में हजारों एकड़ भूमि पर सोलर पैनल्स और पवन टरबाइनों की स्थापना की गई है। इस “हरित विकास” की चमक के पीछे कई ऐसी वास्तविकताएं हैं, जिन पर अब सवाल उठने लगे हैं।
जैवविविधता पर बड़ा खतरा
थार एक विशिष्ट अर्धशुष्क पारिस्थितिकी (Typical semiarid ecology) तंत्र है, जहां खेजड़ी, केर, कुमट जैसे पेड़ और चिंकारा, लोमड़ी, सियार जैसे वन्यजीव पारंपरिक रूप से सहअस्तित्व में रहे हैं। लेकिन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए बड़ी मात्रा में पेड़ काटे गए हैं। खेजड़ी जैसे पेड़, जो मिट्टी को बांधते हैं और मरुस्थलीकरण रोकते हैं, तेजी से खत्म हो रहे हैं। वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास छिनने से उनकी संख्या में गिरावट आई है। विशेष चिंता का विषय है महान भारतीय बस्टर्ड (गोडावण), जो पहले ही संकटग्रस्त प्रजाति है। हाइटेंशन लाइनें और टरबाइनों से टकराकर इनकी मौत की घटनाएं बढ़ी हैं।
स्थानीय लोगों की आजीविका पर असर
सोलर और विंड पावर कंपनियों द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि में अधिकतर चरागाह और कृषि योग्य जमीन शामिल है। इससे पशुपालन पर आधारित आजीविका प्रभावित हुई है। कई गांवों में लोग चराई के लिए बाहर नहीं जा पा रहे, जिससे उन्हें अपने पशुओं को बेचना पड़ा।
कई ग्रामीणों का कहना है कि कंपनियों द्वारा मुआवजा अधूरा दिया गया, और रोजगार के वादे भी पूरे नहीं हुए। गांवों से पलायन बढ़ रहा है और पारंपरिक जीवनशैली टूट रही है।
सांस्कृतिक धरोहरों पर खतरा
थार में ‘ओरण’ कहलाने वाले पवित्र स्थल स्थानीय समुदायों की आस्था और जैव संरक्षण का केंद्र हैं। यहां पेड़ों को नहीं काटा जाता और वन्यजीवों को संरक्षण मिलता है। लेकिन अब ओरण की भूमि पर कंपनियों ने कब्जा कर लिया है।
स्थानीय विरोध के बावजूद प्रशासनिक मशीनरी ने कई बार पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) रिपोर्टों में सच्चाई छुपाई। कई रिपोर्टों में ‘बंजर भूमि’ दिखाकर परियोजनाएं पास कराई गईं, जबकि वह क्षेत्र जैविक दृष्टि से संवेदनशील था।
वन्यजीव संरक्षण को लेकर चिंता
गोडावण जैसे पक्षियों के लिए खुला और शांत वातावरण जरूरी होता है, लेकिन अब सौर पैनलों और टरबाइनों की आवाज से उनका व्यवहार प्रभावित हो रहा है। न केवल पक्षी, बल्कि चिंकारा और अन्य स्तनधारी भी इन इलाकों से दूर जा रहे हैं।
वहीं शिकारी गतिविधियों की भी सूचनाएं मिली हैं। रेगिस्तान में शिकारियों की घुसपैठ से वन्यजीवों के लिए खतरा और बढ़ गया है।
क्या हैं समाधान?
पर्यावरणविदों और स्थानीय संगठनों ने सरकार से मांग की है कि:
• EIA प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और स्वतंत्र विशेषज्ञों से मूल्यांकन करवाया जाए।
• जैवविविधता और सांस्कृतिक महत्व वाले क्षेत्रों को ‘नो डेवेलपमेंट ज़ोन’ घोषित किया जाए।
• कंपनियों को हाइटेंशन तारों की जगह भूमिगत केबल लगाने के लिए बाध्य किया जाए।
• स्थानीय लोगों की सहमति और भागीदारी के बिना कोई परियोजना न चलाई जाए।
थार के रेगिस्तान की पहचान केवल उसके रेत के टीलों से नहीं, बल्कि उसकी संस्कृति, जीव-जंतुओं और सदियों पुरानी जीवनशैली से है। अगर यही ‘हरित ऊर्जा’ परियोजनाएं उसे नष्ट कर दें, तो यह न केवल पारिस्थितिकीय आपदा होगी, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्षरण भी। थार आज एक मोड़ पर खड़ा है जहां विकास और विनाश की रेखाएं आपस में उलझ चुकी हैं। जरूरी है कि समय रहते संतुलन साधा जाए, वरना यह रेगिस्तान अपनी जैविक आत्मा खो देगा।