थार, राजस्थान: जहां एक ओर देशभर में मातृ शक्ति को सम्मान देने की बातें होती हैं, वहीं राजस्थान के थार क्षेत्र से आई एक खबर ने इंसानियत और प्रशासनिक न्याय पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक 2 माह की नवजात की मां को सिर्फ इसलिए जेल में डाल दिया गया क्योंकि उसने अपनी जमीन पर लगने वाले टावर के बदले मुआवज़ा की मांग की।
क्या अपनी ज़मीन के हक के लिए आवाज़ उठाना अब अपराध बन चुका है?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस और प्रशासन पूंजीपतियों के दबाव में काम कर रहे हैं। “पुलिस अब न्याय नहीं, पैसा देखती है। उनकी आत्मा मर चुकी है,” एक ग्रामीण की आंखों में आंसुओं के साथ निकले ये शब्द प्रशासन की संवेदनहीनता को बयां कर रहे हैं।
क्या नेताओं ने थार की बोली लगा दी है
थार में चल रही इस जबरन विकास की दौड़ में न केवल आम लोग पीड़ित हैं, बल्कि इस क्षेत्र की जैवविविधता, संस्कृति और पारंपरिक जीवनशैली पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। स्थानीय नेताओं और प्रशासन ने न तो बाशिंदों का भविष्य देखा, न ही यह सोचा कि इन योजनाओं का असर इस रेगिस्तानी भूमि पर क्या होगा।
सरकारी की हर नीति न्याय नहीं होती
सरकारी योजनाएं और कॉर्पोरेट समझौते थार को बदल रहे हैं, लेकिन सवाल यह है क्या हर सरकारी योजना सही होती है? क्या सिर्फ सरकारी अनुमति से ही कोई परियोजना न्यायपूर्ण बन जाती है?
बुझते थार की कुछ बाकी चिंगारियां
रविन्द्र भाटी जैसे जनप्रतिनिधि, अकेले नहीं हैं राजनीतिक रोटियां सेकने वाले लोग आम जनता की तकलीफ में नहीं आते, लेकिन इस बार थार के लोग चुप नहीं हैं। भाटी जैसे जनप्रतिनिधि जब सत्ता और पूंजी के विरुद्ध खड़े होते हैं, तो उनके साथ थार का एक बड़ा वर्ग खड़ा है — वे लोग जो थार के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
मुख्यमंत्री एवं CMO से अपील
लोगों ने मुख्यमंत्री कार्यालय और सत्ता में बैठे लोगों से अपील की है कि इस फैसले पर पुनर्विचार करें। क्या एक मां को जेल में डाल देना ही समाधान है? थार को हो रही अपूरणीय क्षति पर सोचने और संवेदनशीलता के साथ उचित कदम उढ़ाने कि जरूरत है। थार को बंजर समझने की गलती देश की आम जनता भी करती है थार सिर्फ जमीन नहीं, ये जीवन है। इसे उजाड़ना विकास नहीं विनाश है। विकास को सुस्टेनब्लिटी की ओर मोड़ा जाना होगा।