08 को नागौर जिले के श्री अमर राजपूत छात्रावास परिसर में एक ऐतिहासिक क्षत्रिय स्वाभिमान अस्मिता महासम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। दोपहर 2:00 बजे से शुरू होने वाला यह आयोजन समस्त क्षत्रिय समाज द्वारा मिलकर आयोजित किया गया है। आयोजन को लेकर युवाओं में उत्साह है, और विभिन्न जिलों से प्रतिनिधियों ने तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। यह केवल एक सामाजिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारतीय राजनीतिक और सामाजिक इतिहास से जुड़ी गहराई को छूता हुआ आयोजन है। यह सम्मेलन उस चेतना का पुनर्जागरण है, जिसने भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों तक शासन, सुरक्षा और संस्कृति के केंद्र में क्षत्रिय समाज को रखा।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
भारत का क्षत्रिय वर्ग सदियों से राष्ट्र की रक्षा, धर्म की स्थापना और सामाजिक व्यवस्था के संचालन में अग्रणी रहा है। चाहे वह महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धा हों, पृथ्वीराज चौहान की बलिदानी गाथाएं हों या फिर मराठा साम्राज्य के तेजस्वी सेनापति सभी ने सत्ता नहीं, बल्कि कर्तव्य को सर्वोपरि माना। आज वही गौरवशाली वंशज जब राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सरकारी नीतियों और सामाजिक सम्मान में हाशिए पर धकेले जाते हैं, तो स्वाभाविक है कि एक स्वाभिमानी प्रतिकार खड़ा हो।
सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:
बीते दशकों में भारत में राजनीति ने जातिगत समीकरणों को जिस तरह से गढ़ा है, उसमें क्षत्रिय समाज एक “राजनीतिक टूल” बनकर रह गया है। जो केवल चुनावों में याद किया जाता है, लेकिन नीति-निर्धारण में जिसकी भूमिका सीमित कर दी जाती है। यही कारण है कि आज समाज के भीतर एक असंतोष और आत्ममंथन का भाव जाग्रत हुआ है। यह महासम्मेलन उसी मंथन का परिणाम है। एक मंच जहां समाज अपनी दशा-दिशा पर चर्चा करेगा, नई पीढ़ी के लिए नेतृत्व की राह तय करेगा और राजनीतिक विमर्श में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराएगा।
सामाजिक संगठनों और युवाओं की भूमिका:
आज क्षत्रिय समाज के युवा शिक्षित, जागरूक और डिजिटल माध्यमों से सशक्त हैं, लेकिन उन्हें संगठित रूप से दिशा देने वाला नेतृत्व नहीं मिल पाया है। इस सम्मेलन में युवाओं की भूमिका केवल सहभागिता की नहीं, बल्कि भविष्य की वैचारिक रीढ़ बनने की है। राजपूत छात्रावास नागौर में हुई चर्चाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह आंदोलन केवल सम्मान का नहीं, बल्कि पहचान, अधिकार और हिस्सेदारी का है।
महासम्मेलन का संदेश:
“बुलावे भेजे नहीं जाते, जंग-ए-स्वाभिमान में योद्धा खुद आ जाते हैं जंग-ए-मैदान में” यह केवल नारा नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में क्षत्रिय समाज की नई दस्तक है। यह सम्मेलन समाज को चेताने, जगाने और संगठित करने का प्रयास है। ताकि ऐतिहासिक स्वाभिमान को आज के सामाजिक संघर्ष में बदला जा सके।