बाड़मेर/जैसलमेर, राजस्थान: थार के रेगिस्तानी इलाकों में खेजड़ी के पेड़ों की कटाई को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सैकड़ों वर्षों पुराने खेजड़ी के पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे न केवल पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास भी खतरे में पड़ रहा है।

हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुई कुछ तस्वीरों में देखा गया कि जिन मजदूरों को खेजड़ी के पेड़ काटने के लिए लाया गया, वे उन्हीं पेड़ों की छांव में बैठकर खाना खा रहे हैं। पर्यावरणवादी द डेजर्ट फोटोग्राफर ने ट्वीट किया “खेजड़ी काटने आये लोग खेजड़ी की छांव में खाना खा रहे हैं। विनाशकारी हथियार हाथ में लेकर इंसान विकास के गीत गा रहे हैं। खेजड़ी ना काटो सरकार।”

 

राजस्थान के मरुस्थल में खेजड़ी को ‘संजीवनी’ माना जाता है। यह पेड़ न केवल मिट्टी की उर्वरता और स्थिरता बनाए रखता है, बल्कि हिरण, खरगोश, और अन्य जानवरों के लिए छांव और भोजन का भी स्रोत है। तापमान जब 50 डिग्री के पार जाता है, तब यही पेड़ वन्यजीवों और स्थानीय लोगों के लिए जीवन रेखा बनते हैं।

 

पर्यावरण कार्यकर्ता चेतावनी दे रहे हैं कि यदि यही सिलसिला जारी रहा, तो थार का पारंपरिक जैविक संतुलन बिगड़ सकता है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “ये पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं हैं, ये हमारी संस्कृति और पर्यावरण का हिस्सा हैं। सौर ऊर्जा जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने जंगल और जानवरों की कीमत पर इसे हासिल करें।”

 

सरकारी अधिकारियों की ओर से अभी तक कोई ठोस बयान सामने नहीं आया है, लेकिन ग्रामीणों की मांग है कि पेड़ों की कटाई पर तत्काल रोक लगाई जाए और सौर परियोजनाएं बिना पर्यावरणीय नुकसान के योजनाबद्ध तरीके से चलाई जाएं।

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