राजस्थान की रेत में जीवन की सबसे बड़ी उम्मीद रही है खेजड़ी इस वृक्ष को थार की “तुलसी” कहा जाता है। यह ना केवल मरुस्थलीय जीवन की रीढ़ है, बल्कि इसके सहारे वन्यजीव, पशुधन, और इंसान सदियों से जीवन यापन करते आ रहे हैं। लेकिन आज, विकास के नाम पर यही खेजड़ी निर्दयता से काटी जा रही है, और राजस्थान के रेगिस्तान की आत्मा को छीन लिया जा रहा है। हाल ही में राजस्थान के पूर्वी मरुस्थल और थार रेगिस्तान में खेजड़ी (Prosopis cineraria) की कटाई के विरोध में स्थानीय समुदायों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। राज्य के कई जिलों जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर और नागौर में सोलर ऊर्जा कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर खेजड़ी के पेड़ काटे या दफनाए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया ने केवल एक पेड़ काटने का मुद्दा नहीं खड़ा किया, बल्कि इलाके की पारिस्थितिकी, वन्य जीव जीवन और स्थानीय जलवायु को गहरा नुकसान पहुंचाया है। कुछ कंपनियों द्वारा बड़ी संख्या में खेजड़ी के पेड़ों को काटे जाने की खबरों ने स्थानीय जनता को झकझोर कर रख दिया है। पर्यावरण दिवस पर मात्र एक पौधा लगाने वाले जब हजारों पेड़ों को काटते हैं, तो यह दोहरापन साफ नजर आता है।

सरकार और कंपनियों की चुप्पी सवाल खड़ी करती है क्या यही है विकास? 

राजस्थान का मरुस्थल ना केवल इंसानों बल्कि काले हिरण, लोमड़ी, चिंकारा, रेगिस्तानी बिल्ली जैसे दुर्लभ वन्यजीवों का घर है। यह भूभाग प्राकृतिक रूप से कठिन होते हुए भी जैव विविधता का अद्भुत उदाहरण है। खेजड़ी इस संतुलन की सबसे अहम कड़ी है यह जमीन को पोषक बनाती है, पशुधन को चारा देती है, और तापमान को संतुलित करती है।

कटाई का दायरा: हजारों पेड़ खतरे में

जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर की बहुत-सी जमीनें सोलर प्लांट्स के लिए सरकार द्वारा कंपनियों को पट्टे पर दी जा चुकी हैं, जिसके चलते हजारों खेजड़ी के पेड़ काटे जा चुके हैं अथवा जमींदोज किए गए या जमीन में दफना दिए गए। फलोदी (जोधपुर जिला) में सोलर परियोजना स्थल से 47 भूमिगत दफन खेजड़ी के पेड़ बरामद हुए जो एक गहरे गड्ढे में दबे थे। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि बढ़ते सोलर प्रोजेक्ट्स के कारण फलोदी क्षेत्र में 10,000 से अधिक खेजड़ी के पेड़ काटे गए हैं, जो भू-राजस्व और प्रशासन की मिलीभगत से संदिग्ध रूप से बड़े पैमाने पर चल रहा है बुजुर्गों ने जिस पेड़ को सदियों में पाला, वो आज मशीनों से मिनटों में गिरा दिए जा रहे हैं। युवाओं को अब जागना होगा। ये नेता और कंपनियां सब कुछ बेच कर हमें AC में बंद, जलवायु संकट से घिरे जीवन की ओर धकेल रहे हैं। आज खेजड़ी कट रही है, कल हमारा अस्तित्व।

समाज और आंदोलन: Bishnois का विरोध

बिश्नोई समुदाय जो सदियों से खेजड़ी संरक्षण का वचन देता रहा है ने कई स्थानों पर सड़कों पर उतर कर विरोध जताया है। उदाहरण स्वरूप, जैसलमेर में शहर बंद रहा और ‘टॉर्च़ मार्च’ निकाला गया, जबकि बीकानेर में बोला गया बंद और बाड़मेर में महापड़ाव की तैयारी की जा रही है। इन आंदोलनों की मांग है कि सोलर कंपनियाँ रिजेक्ट लैंड (अवन्य भूमि) ही उपयोग करें, 30% जमीन पर वृक्षारोपण छोड़कर प्रोजेक्ट विकसित करें, तथा खेजड़ी कटाई पर कड़ा कानून बनाया जाए वर्तमान में जुर्माना मात्र ₹100 है, जो बेहद पुराना और अप्रभावी माना जा रहा है।

कानूनी कार्रवाई एवं NGT के आदेश

National Green Tribunal (NGT) ने अक्टूबर 2022 में निर्णय लिया कि Jodhpur के Badi Sid क्षेत्र में AMP Energy Green Four Pvt Ltd द्वारा कटी 250 संरक्षित खेजड़ी की जगह 10 गुना नए पेड़ लगाए जाएँ। कंपनी को ₹2 लाख एडवांस तथा ₹1 लाख पर्यावरणीय मुआवजा देने के आदेश दिए। हालांकि, केवल जुर्माना लगने से ही कंपनियों पर असर नहीं हुआ। राजस्थान के Tenancy Act के तहत जुर्माना ₹100–₹1,000 तक है, जो आज के परिदृश्य में अत्यंत नगण्य है। सोलर ऊर्जा का प्रसार ज़रूरी है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के संतुलन के साथ। खेजड़ी वनों का विनाश सिर्फ पेड़ कटने का विषय नहीं, बल्कि संपूर्ण थार पारिस्थितिकी, जलवायु संतुलन, वन्यजीवों, और सामाजिक–धार्मिक जीवन पर व्यापक असर डालता है। यदि अभी भी ठोस कानूनी, प्रशासनिक और सामुदायिक कदम नहीं उठाए गए, तो राजस्थान का मरुस्थल जल्द ही irreversible ecological collapse की ओर अग्रसर हो सकता है।

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