नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को युद्धविराम (सीज़फायर) हुआ। दिखने में यह शांति का कदम है, लेकिन इसके पीछे कई बड़े सवाल और कारण छिपे हैं। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। अमेरिका की मदद से उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से कर्ज मिला। यह कर्ज मिलने के लिए पाकिस्तान को अपने माहौल में शांति दिखानी थी। इसके बाद ही दोनों देशों के बीच यह सीज़फायर हुआ।

भारत ने इस दौरान आतंकवादी हमलों का जवाब भी दिया, लेकिन अब वह भी नहीं चाहता कि हालात ज्यादा बिगड़ें। हालांकि, भारत के लिए यह सोचने का समय है कि सिर्फ जवाब देना काफी नहीं है। अब जरूरत है कि वह अपनी सुरक्षा तकनीकों में सुधार करे जैसे ड्रोन, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष से निगरानी की तकनीकें। पाकिस्तान में बलूचिस्तान नामक इलाके में विरोध और विद्रोह की स्थिति बनी हुई है। इससे पाकिस्तान को डर है कि अगर भारत ने उसका समर्थन किया, तो देश के अंदर ही हालत और खराब हो सकते हैं।

अमेरिका ने इस बार सिर्फ दोस्त की तरह मदद नहीं की बल्कि एक ऐसे खिलाड़ी की तरह काम किया जिसने दोनों देशों को अपने हिसाब से मोहरे की तरह चलाया।

क्या ये शांति लंबे समय तक टिकेगी?

जब तक दोनों देश खुद अपने फैसले नहीं लेते और सिर्फ बाहर के देशों के कहने पर चलते हैं, तब तक यह शांति केवल एक छोटा सा विराम है, असली समाधान नहीं।

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