जयपुर के हृदयस्थल में स्थित ‘डोल का बाड़’ नामक हराभरा जंगल, इन दिनों विकास की आड़ में विनाश का शिकार बन रहा है। लगभग 2,500 पेड़ों की कटाई की योजना को लेकर स्थानीय जनता में आक्रोश है। जहां एक ओर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री एक-एक पेड़ को अपनी मां के नाम समर्पित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जयपुर शहर के बीचोंबीच एक संपन्न प्राकृतिक क्षेत्र को नष्ट किया जा रहा है। यह स्थिति सत्ता के दोहरे मापदंड को दर्शाती है।

प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए जंगलों का अस्तित्व जरूरी है। डोल का बाड़ न केवल सैकड़ों पक्षियों और जीव-जंतुओं का घर है, बल्कि यह शहरी क्षेत्र के लिए ऑक्सीजन का स्रोत भी है। यदि इस तरह पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होती रही, तो भविष्य में जयपुर जैसे शहरों को गंभीर पर्यावरणीय संकटों का सामना करना पड़ेगा। इस विनाश के खिलाफ युवाओं ने एकजुट होकर विरोध जताया। सैकड़ों छात्र-छात्राओं और पर्यावरण प्रेमियों ने रैली निकालकर जंगल के चारों ओर मानव शृंखला बनाकर संदेश दिया कि वे प्रकृति के रक्षक हैं। “हम पेड़ों के साथ हैं” और “प्रकृति नहीं बचेगी तो हम नहीं बचेंगे” जैसे नारों के साथ यह विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण लेकिन सशक्त था। युवाओं का यह कदम सरकार को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या विकास का रास्ता पेड़ों को काटकर ही निकलेगा? समय की मांग है कि पर्यावरण संरक्षण और विकास में संतुलन बनाया जाए।

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