थार के तपते रेगिस्तान में एक निर्दोष हिरण ‘रघु’ की मौत ने दिल दहला देने वाला मंजर पेश किया। रघु ने जोजरी नदी का प्रदूषित और केमिकल युक्त पानी पिया, जिससे उसकी मौत हो गई। इस घटना ने न सिर्फ स्थानीय ग्रामीणों को झकझोर दिया, बल्कि पर्यावरण और वन्यजीव प्रेमियों को भी गहरी चिंता में डाल दिया।

इस दर्दनाक घटना के बाद जागरूक युवाओं की टीम ने आगे आकर वन्यजीवों के लिए “खैली” (कृत्रिम जल स्रोत) बनाने का संकल्प लिया। रघु की मौत को एक चेतावनी मानते हुए उन्होंने जोजरी नदी के आसपास के क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए खैलियाँ तैयार कीं, ताकि कोई और रघु ज़हरीला पानी पीकर दम न तोड़े।

 

पिछले साल बनाई गई 6 खैलियों के प्रभाव को देखकर इस साल गाँव-गाँव के लोगों ने स्वयं पैसे इकट्ठे कर 30 से अधिक नई खैलियाँ बनाई हैं। लोग इस टीम से संपर्क कर रहे हैं, नक्शा देखकर खुद अपने क्षेत्र में भी खैलियाँ बना रहे हैं। यह एक जनआंदोलन का रूप ले रहा है।

लेकिन यह सवाल भी उठना लाज़मी है कि सरकार क्या कर रही है? जब नदियाँ ज़हर बन रही हैं और वन्यजीव मर रहे हैं, तब सरकारी एजेंसियाँ और वन विभाग सिर्फ “कार्यक्रम” तक सीमित क्यों हैं? जोजरी नदी की जहरीली स्थिति, न केवल वन्यजीवों बल्कि इंसानों के लिए भी गंभीर खतरा है।

रघु की मौत एक हादसा नहीं, एक संदेश है। और वह संदेश है अब और देरी नहीं। सरकार को चाहिए कि ऐसे जन-उद्यमों का साथ दे, और जोजरी जैसी नदियों को वास्तविक सफाई अभियान के ज़रिए पुनर्जीवित करे। साथ ही, वन्यजीव संरक्षण के नाम पर सिर्फ भाषण नहीं, जमीनी कार्रवाई हो। अगर रघु जैसे किसी मासूम जीव को बचाना हो, तो अपने गाँव में एक खैली बनवा सकते हैं। यह केवल एक जल स्रोत नहीं, बल्कि एक जीवन रक्षक संकल्प होगा।

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version