घटना का विवरण: सिर्फ मूंछ रखने पर जान ले ली गई

15 मार्च 2022 को राजस्थान के पाली ज़िले के बारवा गांव में दिल दहला देने वाली एक घटना हुई, जिसने न सिर्फ स्थानीय समाज को, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया। जितेंद्र मेघवाल, जो एक दलित युवक था, की हत्या सूरज सिंह और रमेश सिंह (राजपुरोहित समुदाय) ने केवल इसलिए कर दी क्योंकि उन्हें जितेंद्र का मूंछ रखना पसंद नहीं आया। इस वजह से दोनों ने मिलकर उसके कंधे, जबड़े, छाती और पेट पर 23 बार चाकू से वार कर दिए। जितेंद्र को अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन गंभीर चोटों के कारण इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।


न्याय की ओर एक कदम: तीसरी जमानत याचिका भी खारिज

इस मामले में मुख्य आरोपी रमेश सिंह राजपुरोहित की तीसरी बार जमानत याचिका दिनांक 5 अप्रैल 2025 को विशेष न्यायालय (SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम), पाली द्वारा खारिज कर दी गई है। इससे पीड़ित परिवार और न्याय के पक्ष में खड़े लोगों को एक नई उम्मीद मिली है।


साक्ष्य और गवाह: मजबूती से रखे गए पक्ष

इस केस में 8 गवाहों ने न्यायालय में स्पष्ट और सशक्त बयान दर्ज कराए हैं, जिससे यह साफ़ हो गया कि यह हत्या पूर्वनियोजित थी और एक जातिवादी मानसिकता से प्रेरित थी। जितेंद्र का आत्मसम्मान, उसकी पहचान, और उसके “मूंछ रखने” जैसे सामान्य व्यवहार को चुनौती समझा गया।


समाज में जातिवाद का ज़हर: क्या मूंछ रखना अपराध है?

यह मामला केवल एक हत्या का नहीं है, यह सामाजिक संरचना में गहराई तक बैठे जातिगत भेदभाव और वर्चस्व की मानसिकता को उजागर करता है। एक युवा का आत्मसम्मान और उसकी व्यक्तिगत पहचान को एक विशेष जाति के लोग बर्दाश्त नहीं कर सके। मूंछ, जो कई समुदायों में सम्मान का प्रतीक मानी जाती है, दलित युवक द्वारा रखे जाने पर आपराधिक दृष्टिकोण से देखा गया।


विचारधारा बनाम मानवता: इस घटना का व्यापक संदेश

देशभर में इस हत्याकांड को बहुजन समाज, दलित आंदोलनों और अंबेडकरवादी विचारधारा से जोड़ा जा रहा है। कई लोग इसे एक सोशल जस्टिस बनाम सवर्ण वर्चस्ववाद की लड़ाई के रूप में देख रहे हैं। लेकिन इस घटना को केवल विचारधारात्मक फ्रेम में देखना पर्याप्त नहीं है। यह घटना सबसे पहले एक मानवता की समस्या है। जब किसी व्यक्ति की जान उसकी पहचान के आधार पर ले ली जाती है, तो यह राष्ट्र की एकता, सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों पर सीधा हमला होता है।

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