नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी ने एक ऐतिहासिक पहल करते हुए भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान को सम्मानित करने हेतु देशभर के 63 प्रमुख मंदिरों में महाआरती और हनुमान चालीसा का आयोजन किया। इस राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कार्यक्रम में केंद्रीय और स्थानीय भाजपा नेताओं के साथ आम जनमानस ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। कई स्थानों पर सांसदों ने स्वयं दीप प्रज्वलित किए और सैनिकों की विजय के लिए प्रार्थना की।
यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि यह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है जिसमें भारत की सनातन परंपरा, राष्ट्रवाद और समर्पण का संगम देखने को मिला। हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए उपस्थित लोगों ने भारत माता के रक्षक वीर सैनिकों के लिए सामूहिक ऊर्जा और आशीर्वाद का संकल्प लिया। एक वरिष्ठ साधु ने कहा, “जब राष्ट्र की रक्षा का प्रश्न होता है, तब धर्म भी रक्षार्थ खड़ा होता है। हमारे देवालय केवल पूजा के स्थान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना के केंद्र हैं।”
विचारणीय तथ्य यह भी रहा कि जहां एक ओर हिंदू मंदिरों ने राष्ट्र की रक्षा में लगे सैनिकों के लिए आशीर्वाद और समर्थन जताया, वहीं किसी अन्य धार्मिक संस्था द्वारा ऐसा कोई सार्वजनिक प्रार्थना आयोजन सामने नहीं आया। इससे यह प्रश्न भी उठता है कि क्या राष्ट्रप्रेम एक विशेष सांस्कृतिक पहचान तक ही सीमित है? इस आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में राष्ट्रवाद और आध्यात्मिकता एक-दूसरे के पूरक हैं। मंदिरों की घंटियों और आरती की ध्वनि में जब देशभक्ति की भावना जुड़ती है, तब वह केवल धर्म का नहीं, संपूर्ण राष्ट्र के आत्मबल का उद्घोष बन जाती है।